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अवसाद की फैलती महामारी

IIआशुतोष चतुर्वेदीII प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in आत्महत्या करने से बड़ा कोई अपराध नहीं है. हाल में तीन जाने-माने लोगों ने आत्महत्या की है. इसके अलावा ऐसी भी कई खबरें सामने आयीं कि 10वीं और 12वीं के नतीजों के बाद कुछ बच्चों ने भी आत्महत्या कर ली. जब-तब किसानों के भी आत्महत्या करने की खबरें […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 18, 2018 1:22 AM
IIआशुतोष चतुर्वेदीII
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in
आत्महत्या करने से बड़ा कोई अपराध नहीं है. हाल में तीन जाने-माने लोगों ने आत्महत्या की है. इसके अलावा ऐसी भी कई खबरें सामने आयीं कि 10वीं और 12वीं के नतीजों के बाद कुछ बच्चों ने भी आत्महत्या कर ली. जब-तब किसानों के भी आत्महत्या करने की खबरें आती रहती हैं. यह प्रवृत्ति गंभीर रूप धारण करती जा रही है. हाल में आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज ने इंदौर स्थित अपने घर पर खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.
भय्यूजी की पहचान आध्यात्मिक गुरु के रूप में थी, लेकिन उनका राजनीति में खासा रसूख था. 2011 में जब अन्ना हजारे ने लोकपाल के समर्थन में दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन शुरू किया था, तो भय्यूजी महाराज ने अनशन समाप्त कराने में अहम भूमिका अदा की थी. 2011 में ही भय्यूजी ने ही नरेंद्र मोदी की सद्भावना यात्रा में जारी उपवास को जूस से तुड़वाया था. हाल में मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने उन्हें मंत्री का दर्जा दिया था. ये बातें बताती हैं कि भय्यूजी कितने प्रभावशाली शख्स थे, लेकिन ऐसा व्यक्ति इतना कमजोर निकला कि आत्महत्या कर ली. उनकी आत्महत्या की मुख्य वजह अवसाद बतायी जा रही है.
भय्यूजी के घर से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह जा रहे हैं, बेहद तनाव में हैं और उकता गये हैं. भय्यूजी का आत्महत्या करना गंभीर मामला है, क्योंकि जिस आध्यात्मिक गुरु पर लोगों का जीवन तनाव और अवसाद मुक्त करने का जिम्मा था, वह खुद ही अवसाद से ग्रसित था और आत्महत्या की हद तक चला गया.
दूसरी घटना उत्तर प्रदेश की है. यूपी पुलिस के एटीएस में अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात राजेश साहनी ने अपने कार्यालय में गोली मारकर आत्महत्या कर ली. गोली चलने की आवाज सुनकर एटीएस कार्यालय में तैनात कर्मचारी कमरे की तरफ दौड़े. यहां उन्होंने खून से लथपथ अधिकारी को देखा और उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गयी. राजेश साहनी मूल रूप से पटना के रहने वाले थे. राजेश साहनी की गिनती उत्तर प्रदेश पुलिस के काबिल अधिकारियों में होती थी. हाल में उन्होंने आइएसआइ एजेंट की गिरफ्तारी समेत कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था. ऐसे ऊर्जावान शख्स ने आत्महत्या क्यों कर ली, यह चिंतनीय है.
तीसरी घटना में महाराष्ट्र के जाने माने पुलिस अधिकारी और एटीएस के पूर्व प्रमुख हिमांशु रॉय ने खुदकुशी कर ली. अगर आपको उनकी छवि याद हो, तो हिमांशु रॉय लंबे-चौड़े और प्रभावशाली व्यक्ति थे. हिमांशु रॉय कैंसर से पीड़ित थे. 1988 बैच के आइपीएस अधिकारी हिमांशु रॉय बीमारी के कारण पिछले दो वर्ष से ऑफिस नहीं जा पा रहे थे. ऐसे पुलिस अफसर, जिसने आइपीएल स्पॉट फिक्सिंग केस को सुलझाया और दाऊद की संपत्ति को जब्त करने में जिसकी प्रमुख भूमिका थी, उसका आत्महत्या करना पूरे देश को चौंकाता है. बाहर से इतना मजबूत दिखने वाला शख्स अंदर से इतना कमजोर कैसे हो सकता है‍?
हाल में बिहार और झारखंड की बोर्ड परीक्षाओं नतीजे आये हैं और कई बच्चों के आत्महत्या करने की खबरें आयीं. यह चिंताजनक स्थिति है. पहले तनाव और अवसाद सिर्फ वयस्क लोगों में होता था, लेकिन अब इसकी चपेट में बच्चे भी आ गये हैं. बच्चों में तनाव सबसे अधिक पढ़ाई और माता-पिता से संवादहीनता को लेकर है. परिवार, स्कूल और कोचिंग में वे तारतम्य स्थापित नहीं कर पाते और तनाव का शिकार हो जाते हैं. हमारी व्यवस्था ने उनके जीवन में अब सिर्फ पढ़ाई को ही रख छोड़ा है. रही-सही कसर टेक्नोलॉजी ने पूरी कर दी है.
मोबाइल और इंटरनेट ने उनका बचपन ही छीन लिया है. वे शारीरिक रूप से भले ही वयस्क नहीं होते, लेकिन मानसिक रूप से वयस्क हो जाते हैं. दूसरी ओर माता-पिता के पास वक्त नहीं है. उनकी अपनी समस्याएं हैं और जहां मां नौकरीपेशा है, वहां संवादहीनता की स्थिति और गंभीर है. बच्चों को स्कूल अच्छा नहीं लगता. इम्तिहान उन्हें भयभीत करता है. नतीजतन, वे बात-बात पर चिढ़ने लगते हैं और स्कूल और घर दोनों में आक्रामक हो जाते हैं. यही वजह है कि बच्चे तनाव और अवसाद के कारण आत्महत्या कर लेते हैं.
आइआइटी जैसे संस्थानों के छात्र भी ऐसा कर गुजरते हैं. दूसरी ओर, देश में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला जारी है. खेती-किसानी का संकट व्यापक है और इसकी चपेट में अनेक राज्यों के किसान आ गये हैं. दरअसल, अवसाद नये दौर की महामारी के रूप में उभरकर सामने आ रहा है. किसी भी समाज और देश के लिए यह बेहद चिंताजनक स्थिति है. कोई शख्स आत्महत्या को आखिरी विकल्प क्यों मान रहा है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग पांच करोड़ लोग अवसाद से पीड़ित हैं.
अमेरिका में सबसे अधिक लोग अवसाद से पीड़ित हैं. इसके बाद जापान, नाइजीरिया और चीन का नंबर आता है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि पीड़ित लोगों में से केवल आधे लोगों का इलाज हो पाता है. आत्महत्या के आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं. दुनिया में हर 40 सेकेंड में एक शख्स आत्महत्या करता है. हालांकि दुनियाभर में आत्महत्या दर में कमी आयी है, लेकिन भारत में स्थिति चिंताजनक है और आत्महत्या की दर में इजाफा हुआ है. हालांकि एकदम ताजा आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन मौजूदा आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में लगभग आठ लाख लोगों ने आत्महत्या की. इनमें एक लाख 35 हजार भारतीय थे.
ऐसा नहीं है कि लोग आत्महत्या सिर्फ आर्थिक परेशानियों के कारण ही करते हों, अन्य कारणों से भी जान दे देते हैं. मौजूदा दौर की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में लोगों को भारी मानसिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है. कई लोग संघर्ष करने के बजाय हार मान कर आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि परीक्षा में असफल होने, नौकरी छूटने अथवा बीमारी जैसी छोटी-छोटी वजहों से भी लोग आत्महत्या कर लेते हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत में अवसाद को बीमारी नहीं माना जाता.
इलाज तो दूर, पीड़ित व्यक्ति की लोग उपहास उड़ाते हैं. कई बार तो पढ़े-लिखे लोग भी झाड़-फूंक के चक्कर में फंस जाते हैं. दरअसल, भारत में परंपरागत परिवार का तानाबाना टूटता जा रहा है. व्यक्ति एकाकी हो गया है और नयी व्यवस्था में उसे आर्थिक और सामाजिक सहारा नहीं मिल पाता है, जबकि कठिन वक्त में उसे इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है. यही वजह है कि अनेक लोग अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं और आत्महत्या जैसे अतिरेक कदम उठा लेते हैं.

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