पुस्तकों से दूर युवा
यह निराशाजनक है कि युवा आबादी का पुस्तकों के प्रति रुझान कम हो रहा है. साहित्यिक समारोहों और पुस्तक मेलों में किताबों से ज्यादा सेल्फी पर उनका जोर ज्यादा है. इसकी एक वजह डिजिटल क्रांति भी है. सरकारी स्कूलों से लेकर निजी विद्यालयों में पुस्तकालयों के लिए किताब खरीदने पर लाखों रुपये खर्च किये जा […]
यह निराशाजनक है कि युवा आबादी का पुस्तकों के प्रति रुझान कम हो रहा है. साहित्यिक समारोहों और पुस्तक मेलों में किताबों से ज्यादा सेल्फी पर उनका जोर ज्यादा है. इसकी एक वजह डिजिटल क्रांति भी है.
सरकारी स्कूलों से लेकर निजी विद्यालयों में पुस्तकालयों के लिए किताब खरीदने पर लाखों रुपये खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि मोबाइल,कंप्यूटर और इंटरनेट के दौर में पुस्तकों की तरफ रुझान कम हो रहा है. जितने पैसे मोबाइल और कंप्यूटर खरीदने में खर्च हो रहे हैं, उनका आधा भी किताबों पर खर्च नहीं हो रहा है. बेशक यह चिंता का विषय हैं.
महेश कुमार, सिद्धमुख(राजस्थान)