अलोकतांत्रिक है इस तरह का विरोध
बिहार की राजधानी पटना में शनिवार को भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जो कुछ किया, वह लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध है. दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोसेफर जीएन साईंबाबा की नक्सली रिश्तों के आरोप में गिरफ्तारी के खिलाफ एक गोष्ठी अनुग्रह नारायण सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान में आयोजित की […]
बिहार की राजधानी पटना में शनिवार को भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जो कुछ किया, वह लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध है. दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोसेफर जीएन साईंबाबा की नक्सली रिश्तों के आरोप में गिरफ्तारी के खिलाफ एक गोष्ठी अनुग्रह नारायण सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान में आयोजित की गयी थी.
गोष्ठी शुरू होने से पहले ही विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने हंगामा शुरू कर दिया. उनका कहना था (और अब भी कहना है) कि प्रोफेसर साईंबाबा के नक्सलियों से रिश्ते हैं और वह नक्सलवाद की पैरोकारी करते रहे हैं. इसलिए उनकी गिरफ्तारी सही है. इस गिरफ्तारी के विरोध में गोष्ठी का आयोजन देशद्रोह है. हंगामा करने पहुंचे इन कार्यकताओं का कहना था कि गोष्ठी के आयोजक साईंबाबा का समर्थन करके देशद्रोही का साथ दे रहे हैं, इस कारण वे किसी भी कीमत पर यह गोष्ठी नहीं होने देंगे. देशद्रोह जैसे आरोप लगाकर परिषद के कार्यकर्ताओं ने जिस तरह गोष्ठी में हंगामा करने की कोशिश की, उसे किसी कोण से सही नहीं ठहराया जा सकता है. लोकतंत्र में विरोध का अधिकार है, लेकिन उपद्रव करने का अधिकार नहीं है-
इस बात का ख्याल सभी को रखना चाहिए. अगर, परिषद के कार्यकताओं को लग रहा था कि साईंबाबा की गिरफ्तारी पर चर्चा के लिए आयोजित गोष्ठी देशद्रोह है, तो उन्हें इस बात की शिकायत पुलिस-प्रशासन से करने की पूरी छूट थी. वे शिकायत कर सकते थे. वे गोष्ठी के अंदर जाकर अपनी बात रखने की अनुमति मांग सकते थे. अपने तर्क और सुबूत से यह बता सकते थे कि साईंबाबा की गिरफ्तारी जरूरी और जायज है.
गोष्ठी के बाहर भी वे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं करके गोष्ठी के आयोजकों से मारपीट करना, शोध संस्थान की संपत्ति की नुकसान पहुंचाने की कोशिश एक आपराधिक कृत्य है और सभ्य समाज में इस तरह की कार्रवाई को सही नहीं ठहराया जा सकता है. पुलिस ने समय पर पहुंच कर परिषद के कार्यकताओं को उपद्रव करने से रोक कर सही काम किया है. इसके अलावा जब तक किसी को अदालत दोषी करार न दे, उसे पहले ही गुनहगार ठहरा दिये जाने की हरकतों से बचा जाना चाहिए.