थाईलैंड में फिर सैनिक शासन
।। डॉ गौरीशंकर राजहंस।। (पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत) थाईलैंड भारत का एक निकटतम पड़ोसी है. सम्राट अशोक के समय में हजारों बौद्ध भिक्षु बर्मा होकर पैदल थाईलैंड गये थे. उस समय उसका नाम ‘सियाम’ था. बाद में ये बौद्ध भिक्षु वहां से मैकांग नदी पार कर बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए लाओस, कंबोडिया […]
।। डॉ गौरीशंकर राजहंस।।
(पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत)
थाईलैंड भारत का एक निकटतम पड़ोसी है. सम्राट अशोक के समय में हजारों बौद्ध भिक्षु बर्मा होकर पैदल थाईलैंड गये थे. उस समय उसका नाम ‘सियाम’ था. बाद में ये बौद्ध भिक्षु वहां से मैकांग नदी पार कर बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए लाओस, कंबोडिया और वियतनाम गये. उसी समय हजारों बौद्ध भिक्षु थाईलैंड में बस गये. तभी से भारतीय बौद्ध भिक्षुओं का थाईलैंड में आना-जाना जारी रहा. भारत से तो बौद्ध धर्म प्राय: लुप्त ही हो गया, परंतु थाईलैंड में अब भी वह राजकीय धर्म है. वहां प्राय: हर घर की चारदीवारी में भगवान बुद्ध की एक छोटी सी प्रतिमा लगी रहती है. थाईलैंड में प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय लाखों भारतीय जाकर बस गये थे. अकेले थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में कई लाख भारतीय आज भी रह रहे हैं.
पिछले कुछ महीनों से थाईलैंड में राजनीतिक अस्थिरता चली आ रही है. पूर्व प्रधानमंत्री थैक्सिन सिनवात्र ने भ्रष्ट तरीके से अकूत धन प्राप्त कर लिया था. 2006 में जब वहां सैनिक क्रांति हुई थी, तब थैक्सिन वहां से भाग कर विदेश चले गये. कभी वे लंदन में रहते हैं, तो कभी दुबई में. हाल में जब थाईलैंड में आम चुनाव हुआ तो थैक्सिन की बहन इंगलक सिनवात्र देश की प्रधानमंत्री चुनी गयीं. इंगलक ने संसद से एक कानून पास कराना चाहा, जिससे उनके भाई थैक्सिन पर भ्रष्टाचार के सारे आरोप समाप्त हो जाते और उन्हें थाईलैंड में आने की आजादी मिल जाती. उसके बाद विपक्ष के लोगों ने इंगलक के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन शुरू कर दिया और उन्हें सत्ता से हटाने की मांग होने लगी.
इस बीच थाईलैंड के न्यायालय ने इंगलक पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये और उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा दिया. जब थैक्सिन भाग कर विदेश चले गये थे, तब वे वहां से फोन द्वारा अपनी बहन को सलाह देते रहे थे कि किस प्रकार किसानों को अपने पक्ष में रखा जाये. इंगलक सरकार ने किसानों को खुश करने के लिए बाजार भाव से डेढ़ गुना मूल्य पर चावल खरीदा. किसान तो खुश हो गये, परंतु किसी विदेशी ग्राहक ने महंगा चावल खरीदने से मना कर दिया. नतीजा, हजारों बोरे चावल थाईलैंड के गोदामों में सड़ते रहे. किसानों को चावल का बढ़ा हुआ मूल्य देने के कारण सरकारी खजाना खाली हो गया. थाईलैंड के न्यायालय ने इंगलक पर इस हेराफेरी का आरोप लगाया, जिससे दक्षिण-पूर्व एशिया का सबसे समृद्ध देश थाइलैंड दिवालियापन के कगार पर आ गया.
थाईलैंड में वहां के राजा को आम जनता भगवान की तरह पूजती है. राजा पीले वस्त्र धारण करते हैं. इसलिए उनके समर्थकों को ‘येलो सर्ट’ कहा जाता है. थैक्सिन और इंगलक के समर्थक राजा के खिलाफ हैं और उन्होंने उनके विरोध में लाल वस्त्र पहनना शुरू कर दिया. इसलिए इन्हें ‘रेड सर्ट’ कहते हैं. जब इंगलक को न्यायालय ने पदच्युत कर दिया तो पूरे थाईलैंड में ‘रेड सर्ट’ समर्थकों ने प्रदर्शन कर मांग की कि इंगलक को फिर से प्रधानमंत्री बनाया जाये. इंगलक के हटने के बाद उनकी पार्टी के ही वाणिज्य मंत्री निवातम रोंग कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाये गये थे. सेना ने येलो सर्ट और रेड सर्ट- दोनों को बुला कर समझौता कराने का प्रयास किया, परंतु सफलता नहीं मिली. अंत में सेना प्रमुख ने टीवी पर आकर कहा कि देश में बढ़ती हुई अराजकता को देखते हुए उन्होंने सत्ता अपने हाथ में ले ली है और संविधान को स्थगित कर दिया गया है. सेना प्रमुख ने दोनों पक्षों के आंदोलनकारियों से कहा कि वे अब अपने घरों में चले जायें, अन्यथा उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. राजधानी बैंकाक में रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक का कफ्यरू लगा दिया गया है.
अमेरिका वर्षो से थाईलैंड का एक निकटतम मित्र रहा है. अमेरिका के विदेश मंत्री केरी ने थाईलैंड की सैनिक क्रांति की घोर निंदा की है और संविधान के स्थगन पर अफसोस जताया है. उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि यह सैनिक शासन शीघ्र समाप्त नहीं हुआ, तो अमेरिकी सरकार को इस बात पर विचार करना होगा कि थाईलैंड को दी जानेवाली अमेरिकी सहायता जारी रखी जाये या नहीं? थाईलैंड में गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है. सेना ने सभी रेडियो स्टेशन और टीवी चैनलों को फिलहाल बंद कर दिया है, लेकिन समाचारपत्रों पर अंकुश नहीं लगा है. पीछे मुड़ कर देखने से ऐसा लगता है कि अपने स्वार्थ के कारण राजनेताओं ने दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे समृद्ध देश थाईलैंड का कबाड़ा कर दिया. कहते हैं कि थाईलैंड में सेना में भी भ्रष्टाचार है. अब देखना यह है कि थाईलैंड में जो गृहयुद्ध की स्थिति है, उस पर सेना नियंत्रण कर पाती है या नहीं. पिछले कुछ दिनों में राजनेताओं के भ्रष्टाचार के कारण वहां आम जनता की आर्थिक स्थिति अत्यंत ही दयनीय हो गयी है. अब देखना यह है कि क्या सैनिक शासक उनकी स्थिति में सुधार ला सकेंगे? एशिया के सभी देश थाईलैंड की पल-पल की घटनाओं को देख कर चिंतित हैं. उम्मीद है कि जल्द ही वहां की आम जनता को जल्दी राहत मिल पायेगी!