चिंतित करतीं तीन घटनाएं
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in पिछले दिनों तीन गंभीर घटनाएं हुईं. ये घटनाएं हम सबके लिए चिंताजनक हैं, क्योंकि ये संकेत देती हैं कि देश किस दिशा में जा रहा है. ये घटनाएं बताती हैं कि अविश्वास का भाव कितने गहरे तक जा पहुंचा है. इन घटनाओं से सीधे तौर से हम और […]
आशुतोष चतुर्वेदी
दूसरी घटना टेलीकॉम कंपनी एयरटेल से संबंधित है. एक लड़की ने एयरटेल को ट्वीट किया- मैंने डीटीएच से जुड़ी एक शिकायत की, लेकिन सर्विस इंजीनियर ने मेरे साथ बुरा सलूक किया. इस ट्वीट पर एयरटेल की तरफ से जवाब दिया गया- हम जल्द आपसे इस शिकायत के संदर्भ में बात करेंगे- शोएब. एयरटेल की तरफ से अगर किसी उपभोक्ता की शिकायत पर जवाब दिया जाता है, तो अंत में वह शख्स भी अपना नाम लिखता है, जिसने एयरटेल की तरफ से जवाब दिया हो. इसके जवाब ने लड़की ने ट्वीट किया- प्रिय शोएब, आप मुस्लिम हैं और मुझे आपके काम की नैतिकता पर यकीन नहीं है… इसलिए एयरटेल से मेरा अनुरोध है कि मुझे एक हिंदू प्रतिनिधि उपलब्ध कराया जाये. इसके बाद एयरटेल की ओर से एक हिंदू शख्स ने जवाब दिया. सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि मुस्लिम प्रतिनिधि से बात न करने की वजह से एयरटेल ने हिंदू प्रतिनिधि से जवाब दिलवाया. एयरटेल के बीच हुई इस बातचीत के स्क्रीनशॉट वायरल हो गया और दोनों तरफ से इस पर प्रतिक्रियाएं आने लगीं. कुछ लोग लड़की के पक्ष में खड़े थे, तो कुछ उसके विरोध में थे. एयरटेल ने सफाई देते हुए कहा कि वह अपने किसी भी कस्टमर या कर्मचारी के साथ जाति या धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं करती. कंपनी ने सभी से गुजारिश की कि इस घटना को मजहबी रंग न दिया जाए.
तीसरी घटना उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की है, जहां एक पासपोर्ट अधिकारी ने एक मुस्लिम-हिंदू दंपती से बदसलूकी की, क्योंकि वे अलग-अलग धर्मों से थे. लखनऊ की तन्वी सेठ ने 2007 में अनस सिद्दीकी से शादी की थी. उनकी छह साल की बच्ची भी है. तन्वी सेठ का कहना है कि वे तीनों पासपोर्ट सेवा केंद्र पासपोर्ट बनवाने गये. शुरुआती दो काउंटरों पर उनके आवेदन की प्रक्रिया पूरी हो गयी, लेकिन जब वह तीसरे काउंटर पर पासपोर्ट अधिकारी के पास गयीं, तो उसने मुसलमान शख्स से शादी के बारे में सवाल-जवाब शुरू कर दिये. पासपोर्ट अधिकारी के पास तकनीकी सवाल पूछने की छूट थी, लेकिन लगता है कि वह अधिक उत्साहित थे. तन्वी सेठ के मीडिया में आये बयानों से लगता है कि अधिकारी बिना मांगे शादी के बाद किसको कौन-सा धर्म अपनाना चाहिए, ऐसी सलाह दे रहे थे. मुझे लगता है कि यह घटना भी पहली दो घटनाओं की कड़ी में है.
आसपास की घटित हो रही इन घटनाओं से आभास होता कि अविश्वास की यह भावना समाज में कितने गहरे तक जा पहुंची है, जबकि असहिष्णुता भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना नहीं है. भारतीय लोकतंत्र धार्मिक समरसता और विविधता में एकता की मिसाल है. यहां अलग-अलग जाति, धर्म, संस्कृति को मानने वाले लोग वर्षों से बिना किसी भेदभाव के रहते आये हैं. भारत जैसी विविधिता दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलती. यह भारत की बहुत बड़ी पूंजी है और यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि इसे बचा कर रखें, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ऐसे मामले रह-रह कर हमारे सामने आ रहे हैं. जब किसी के सर्विस के मामले में धार्मिक आधार पर फैसला किया जाने लगे, तो निश्चित रूप से यह गहरी चिंता का विषय है. हमारे आसपास लोगों को पीट-पीट कर मार दिया जाता है, लेकिन उससे भी समाज उद्वेलित नहीं होता. लोगों में चिंता नहीं जगती. ऐसी घटनाएं हमें सोचने को मजबूर नहीं कर करतीं कि भीड़ तंत्र हमें किस दिशा में ले जायेगा.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इससे निकलने का रास्ता क्या है? मेरा मानना है कि जब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा हो, कोई राह नहीं दिखायी दे रही हो, तो ऐसे में एक ही व्यक्ति राह दिखा सकता है और वह हैं महात्मा गांधी. ऐसे भी लोग हो सकते हैं, जो गांधी को आज के दौर में अप्रासंगिक मान बैठे हों. वे तर्क दे सकते हैं कि मौजूदा दौर में अहिंसा का सिद्धांत अव्यावहारिक है. यह सही है कि गांधी एक विशेष काल खंड की उपज थे. मेरा मानना है कि गांधी से आज भी लेने के लिए बहुत कुछ है. सन् 1909 में गांधी जी ने एक चर्चित पुस्तक हिंद स्वराज्य लिखी थी. उन्होंने यह पुस्तक इंग्लैंड से अफ्रीका लौटते हुए जहाज पर लिखी थी. जब उनका एक हाथ थक जाता था, तो दूसरे हाथ से लिखने लगते थे. यह पुस्तक संवाद शैली में लिखी गयी है. गांधी इसमें लिखते हैं कि हिंसा हिंदुस्तान के दुखों का इलाज नहीं है. उनका कहना था कि हिंदुस्तान अगर प्रेम के सिद्धांत को अपने धर्म के एक सक्रिय अंश के रूप में स्वीकार करे और उसे अपनी राजनीति में शामिल करे, तो स्वराज स्वर्ग से हिंदुस्तान की धरती पर उतर आयेगा.
यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर अगर नजर डालें, तो हम पायेंगे कि पूरी दुनिया उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. खासकर मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में धार्मिक विचारधारा के आधार पर भौगोलिक सत्ता कायम करने की कोशिश की जा रही है. हमारा यह सौभाग्य है कि अब तक हम इस सबसे प्रभावित नहीं हुए हैं, लेकिन यह बात भी हम सब लोगों को साफ होनी चाहिए कि आर्थिक हो या फिर सामाजिक किसी भी तरह की प्रगति शांति के बिना हासिल करना नामुमकिन है. इसलिए यह हम सबके हित में है कि अपने सामाजिक ताने-बाने को हर कीमत पर बनाये रखें.