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गिरके भी वहीं पहुंचेगा

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार अखबारों में खबर मची हुई है- रुपया गिर रहा है. कभी एक डाॅलर में पचपन रुपये आते थे, अब एक डाॅलर में सत्तर रुपये आते हैं, मतलब रुपया गिर रहा है. एक डाॅलर में सौ रुपये आने लगेंगे, तो साफ होगा कि रुपया बहुत ही गिर गया है. रुपये को लेकर […]

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

अखबारों में खबर मची हुई है- रुपया गिर रहा है. कभी एक डाॅलर में पचपन रुपये आते थे, अब एक डाॅलर में सत्तर रुपये आते हैं, मतलब रुपया गिर रहा है. एक डाॅलर में सौ रुपये आने लगेंगे, तो साफ होगा कि रुपया बहुत ही गिर गया है. रुपये को लेकर बहुत फर्जी खबरें आती हैं.

अखबार में छपता है- रुपया गिरा. और बाहर जाकर देखो, तो रुपया वहीं गिरता है जहां पहले गिर रहा था. ठेकेदार, नेता, भ्रष्ट अफसर इनके यहां रुपया गिरायमान रहता है हमेशा. मास्टर, पोस्टमैन, हिंदी का लेखक- इन्हें रुपये से चिरौरी करनी पड़ती है कि भईया गिर जाओ, थोड़ा सा हमारे यहां भी.

मैंने देखा है कि गिरे हुए आदमी के यहां रुपया बहुत स्पीड से गिरता है. मेरे मुहल्ले में है एक, जो सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम करने की नौकरी करता है. लाश देने के लिए भी रिश्वत लेता है. सब कहते हैं कि वह बहुत गिरा हुआ आदमी है. पर जिस दिन उसके अस्पताल में ज्यादा लाशें गिरती हैं, उस दिन उस पोस्टमार्टमी के यहां ज्यादा रुपया गिरता है.

पोस्टमार्टम वाले को क्या रोना. मेरे शहर में जिस साल ज्यादा पुल गिरे थे, उस साल कई ठेकेदारों, नेताओं, इंजीनियरों के यहां ज्यादा रुपया गिरा था.

रुपया गिरे हुए आदमी के यहां बहुत स्पीड से गिरता है, यह बात तो लगातार साफ होती जा रही है. जिन्हें हम बहुत उच्चस्तरीय ईमानदार कहते हैं, रुपया उनके घर का रास्ता भूल जाता है. रुपया गिरने की पहली शर्त है कि बंदा गिरा हुआ हो.

अखबार खबर मचाये हुए हैं- रुपया गिर रहा है. साथ में उन्हें यह भी बताना चाहिए कि सब जगह नहीं गिर रहा है रुपया. चुनिंदा जगहों पर ही गिर रहा है रुपया. साथ में खबर चल रही है कि डाॅलर उठ रहा है.

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप तो बहुत खराब बातें कर रहे हैं. इस पर प्रतिबंध, उस पर रोक. फिर भी डाॅलर उठ रहा है. खराब बातें सुनकर डाॅलर उठ जाता है. खराबी में उठाने की अपार संभावनाएं होती हैं. मेरे परिचित हैं, पहले अश्लील कविताएं मंच से पढ़ते है. हिट होते थे, उत्साहवर्धन हुआ तो वह अब लगभग वस्त्र-मुक्त कविताएं पढ़ने लगे हैं मंचों, अब वह सुपर हिट हैं.

घटियापन डाॅलर और कवियों का लेवल उठा देता है. मेरे एक कवि मित्र हैं वीर रस की ओज कविता पढ़ते हैं. पहले वह गोलियों से पाकिस्तान को निपटाते थे. अब अपनी दो मिनट की कविता में वह पाकिस्तान पर पांच एटम बम फोड़ देते हैं.मैंने एक दिन समझाया- ये पांच-पांच एटम बम चला देते हो, कुछ पता है एटम बम के नतीजे क्या होते हैं.

बच्चों की कई पीढ़ियां विकलांग पैदा होती हैं, एक ही एटम बम से. एटमी कवि ने बताया कि बच्चे भले ही विकलांग हों एटम बम से, पर एटमी कविता से उनकी कविता के पेमेंट को बीस नये हाथ लग गये हैं. पेमेंट धुआंधार हो रहा है, एटम बम गिरने से. घटियापन का विकट बाजार है.

खैर रुपये के गिरने की चिंता मैंने छोड़ दी है. कितना ही गिर ले रुपया, वह पहुंचेगा वहीं, जहां पहले ही पहुंच रहा है.

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