जिलों का विकास जरूरी
नीति आयोग द्वारा जारी विकास पर आधारित जिलों की सूची कई अर्थों में महत्वपूर्ण है. इस डेल्टा रैंकिंग के पीछे आयोग का इरादा 108 सबसे पिछड़े जिलों में बेहतरी की प्रतियोगिता को बढ़ावा देना है. इस सूची में गुजरात के दाहोद का पहला स्थान चौंकानेवाला है, क्योंकि यह राज्य आर्थिक और औद्योगिक रूप से काफी […]
नीति आयोग द्वारा जारी विकास पर आधारित जिलों की सूची कई अर्थों में महत्वपूर्ण है. इस डेल्टा रैंकिंग के पीछे आयोग का इरादा 108 सबसे पिछड़े जिलों में बेहतरी की प्रतियोगिता को बढ़ावा देना है. इस सूची में गुजरात के दाहोद का पहला स्थान चौंकानेवाला है, क्योंकि यह राज्य आर्थिक और औद्योगिक रूप से काफी विकसित माना जाता है.
वहीं जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के सबसे निचले पायदान पर होने को समझा जा सकता है, क्योंकि कश्मीर में लंबे अरसे से अस्थिरता का माहौल है, लेकिन 20 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में बिहार, ओड़िशा और झारखंड का होना कई सवाल खड़े करता है. सर्वाधिक पिछड़े जिलों में से नौ बिहार, पांच झारखंड और तीन ओड़िशा में हैं.
ये राज्य देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में शुमार होते हैं, पर बीते कई सालों से यहां मूल राजनीतिक एजेंडा विकास ही रहा है तथा सरकारें इसी मुद्दे पर बनती रही हैं. फिर जिलों का विकास कुंद क्यों है? बिहार का बेगूसराय राजधानी पटना से सटा हुआ है, तो झारखंड की राजधानी रांची ही पिछड़ेपन की शिकार है. मार्च में जारी सूची में तेलंगाना का आसिफाबाद 100वें स्थान पर था, अब वह इस सूची में 15वें स्थान पर है.
अनेक जिलों ने इसी तरह से बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन उत्तर और पूर्वी भारत के राज्यों के जिलों की हालत बेहद निराशाजनक है. निश्चित रूप से इन राज्यों की सरकारों की जवाबदेही बनती है, पर नीति आयोग का यह कहना कि पिछड़े जिलों या राज्यों को नाम लेकर इसलिए चिह्नित किया जाना चाहिए कि वे शर्मिंदा हों, जैसा कि मार्च में आयोग के मुख्य अधिशासी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा था, सही समझ नहीं है. यह ठीक है कि कुछ राज्य पिछड़े हैं, पर पूरे देश के विकास में बाधक होने का दोष उनके ऊपर मढ़ देना गलत नीतिगत विचार है.
पिछड़ेपन के कई कारक हैं- बरसों से केंद्र से वित्तीय मदद का अपर्याप्त होना, आर्थिक एवं मानव संसाधनों का उचित हिस्सा नहीं मिलना, विकास नीतियों में इन राज्यों को प्राथमिकता नहीं मिलना आदि. इन कमियों को मौजूदा केंद्र सरकार ने भी रेखांकित किया है, पर वित्तीय और नीतिगत स्तर पर बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है.
यह भी है कि विकास का जोर कुछ क्षेत्रों में अधिक रहता है, कुछ में कम. मसलन, सड़क, ऊर्जा और भवन-निर्माण को प्राथमिकता मिली है, परंतु शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, सुरक्षा, समाज कल्याण आदि पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है. सर्वांगीण और स्थायी विकास के लिए यह रवैया ठीक नहीं है, लेकिन राज्य सरकारें भी इन खामियों को ठीक करने में नाकाम रही हैं.
ऐसे उदाहरण हैं कि राज्य सरकारें किसी मद में आवंटित राशि को खर्च न कर सकीं. देश के असमान विकास की समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें तथा योजनाओं को विकेंद्रित रूप से जिले के स्तर पर कार्यान्वित किया जाए.