जे चेलामेश्वर : ”संन्यासी इन कोर्ट”
II रविभूषण II वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों- जस्ती चेलामेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ की अभूतपूर्व, अप्रत्याशित प्रेस कांफ्रेंस (12 जनवरी, 2018) के बाद से अब तक जे चेलामेश्वर के विरोध की संख्या कम नहीं रही है. क्या सचमुच चेलामेश्वर के बयान उनकी ‘गरिमा के प्रतिकूल’ थे, […]
II रविभूषण II
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com
सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों- जस्ती चेलामेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ की अभूतपूर्व, अप्रत्याशित प्रेस कांफ्रेंस (12 जनवरी, 2018) के बाद से अब तक जे चेलामेश्वर के विरोध की संख्या कम नहीं रही है.
क्या सचमुच चेलामेश्वर के बयान उनकी ‘गरिमा के प्रतिकूल’ थे, जैसा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने कहा है. चेलामेश्वर अब सेवा-निवृत्त हो चुके हैं (22 जून, 2018). सेवा-निवृत्ति के बाद न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर ने जो कई इंटरव्यू दिये हैं, उसके बाद बार काउंसिल की प्रेस रिलीज सामने आयी. एक प्रेस रिलीज में बीसीआई के अध्यक्ष ने ‘आत्मसंयम के सिद्धांत’ को उनके द्वारा भुला दिये जाने की बात कही है.
इस कथन की उन्होंने कड़ी आलोचना की और यह भी कहा कि कई बार काउंसिल अपने बयान में उनका सही नाम तक नहीं लिख सका था और इनमें से ही कई वकील आनेवाले दिनों में जज बनेंगे. ‘डेक्कन हेराल्ड’ को दिये अपने इंटरव्यू में बार काउंसिल द्वारा की गयी अपनी आलोचना पर जस्टिस चेलामेश्वर ने सख्त टिप्पणी की है.
रमैया पब्लिक पॉलिसी सेंटर (बेंगलुरु) के उद्घाटन समारोह (20 जनवरी, 2018) में भारत के 25वें मुख्य न्यायाधीश मनेपल्ली नारायण राव वेंकट चेलैया ने अपने भाषण मे जस्ती चेलामेश्वर को ‘संन्यासी इन कोर्ट’ कहा, जिनकी ‘आत्मा के साथी न्याय, सत्य और साहस’ है.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकट चेलैया ने उस समय यह भी कहा था कि अगर चेलामेश्वर तेलुगु भाषी जनता का इतिहास लिखें, तो उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त होगा. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ऐसेे न्यायाधीशों की संख्या अधिक नहीं है, जो संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए वास्तविक रूप में चिंतित रहे हों. अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने यह कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के 240 जजों में से वे उन 50 जजों में एक थे, जिसे संवैधानिक संशोधन की वैधता या तर्कसंगति पर विचार करने का अवसर मिला था. उनकी चिंता में संस्था थी, देश की जनता थी.
जब वे और वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका में कहीं नहीं थे, भारत के सत्रहवें मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती ने पहली बार यह लिखा था कि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि भारत का मुख्य न्यायाधीश सदैव संस्था की रक्षा करेगा. चेलामेश्वर का बार-बार सुप्रीम कोर्ट की समचित्तता और समबुद्धि की सुरक्षा पर था, क्योंकि इसके बिना लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता. 2015 में उन्होंने एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) का समर्थन किया था. तीन वर्ष बाद भी उनका यह विश्वास है कि कॉलेजियम में पर्याप्त पारदर्शिता नहीं है.
गोपनीयता के अधिकार को उन्होंने मौलिक अधिकार माना था. वे 44वें पूर्व मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की संविधान-बेंच में थे, जिसने एनजेएसी को अलग किया. चेलामेश्वर एकमात्र असहमत न्यायाधीश थे.
पूर्व न्यायाधीश जे चेलामेश्वर ने एनडीटीवी इंटरव्यू में यह कहा है कि जनता के बीच जाने का उन्हें कोई अफसोस या पश्चाताप नहीं है. इंडिया टुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, दि प्रिंट और एनडीटीवी को दिये गये उनके इंटरव्यू में कहीं भी प्रेस-कांफ्रेंस को लेकर किसी प्रकार का खेद नहीं है. उनके समक्ष ‘संस्थागत अखंडता’ और ‘स्वतंत्रता’ का प्रश्न सदैव प्रमुख रहा है.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता का प्रश्न उनके लिए बड़ा प्रश्न था. हार्वर्ड क्लब ऑफ इंडिया के एक इवेंट में करन थापर का 65 मिनट का उनसे इंटरव्यू और इंडिया टुडे में राजदीप सरदेसाई का लिया गया इंटरव्यू यह प्रमाणित करता है कि वे कितने दृढ़निश्चयी, आत्मसंयमी, तार्किक और संविधान एवं लोकतंत्र की रक्षा के लिए चिंतित थे. उनके जैसे सिद्धांत प्रिय, नैतिक और सत्यनिष्ठ न्यायाधीश अब कम हैं. सेवा-निवृत्ति के बाद एक दिन भी दिल्ली में न रुकने की बात उन्होंने कही थी और ऐसा किया भी.
उनके अनुसार मुख्य न्यायाधीश सहित प्रत्येक कार्यालय ‘पब्लिक स्क्रूटनी’ का विषय है. अगर उनकी नियुक्ति में देर न हुई होती, तो वे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते. उनके प्रेस कांफ्रेंस को जिस किसी ने उनके मुख्य न्यायाधीश न होने से जोड़ा है, वह गलत है. उन्होंने अफ्रीका में गोरों द्वारा रेल के डिब्बे से गांधी को प्लेटफॉर्म पर गिरा देने का उदाहरण दिया है. क्या गांधी ने स्वतंत्रता की लड़ाई निजी अपमान से बदला लेने के लिए लड़ी?
जे चेलामेश्वर की लड़ाई पारदर्शिता को लेकर थी. उन्होंने राजनीतिक विचारधारा वाले जज को उस जज की तुलना में महत्व दिया है, जो हमेशा अपने विचार बदलता है. उन्होंने बार-बार यह कहा है कि सेवा-निवृत्ति के पश्चात वे कोई सरकारी पद ग्रहण नहीं करेंगे.
जे चेलामेश्वर के सारे सवाल अब भी कायम हैं. कंस्टीट्यूशन क्लब में उनका भाषण ‘लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका’ पर था.
न्यायालय में भ्रष्टाचार पर उन्होंने बार-बार ध्यान दिलाया. उनके तर्क अकाट्य हैं. हाल के वर्षों में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर इतनी बेचैनी अन्य न्यायाधीशों में नहीं दिखायी देती. ‘संन्यासी’, सही संन्यासी को कभी अपनी चिंता नहीं रही है. जहां तक परिवार का प्रश्न है, जे चेलामेश्वर ने अपने परिवार को कम समय दिया, क्योंकि देश ही उनका परिवार था.
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है- अगर आप मेरी पत्नी से यह प्रश्न पूछें तो वह मेरे खिलाफ 500 पृष्ठों की शिकायत दर्ज करेगी. अब न्यायपालिका में जे चेलामेश्वर एक अपवाद और उदाहरण के रूप में याद किये जाते रहेंगे.