अनुच्छेद 370 पर हड़बड़ी ठीक नहीं
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह द्वारा अनुच्छेद 370 पर दिये बयान पर सफाई के बावजूद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के बयान और उस पर आरएसएस के जवाबी हमले से यह मसला फिर चर्चा में है. राज्य को विशेष दर्जा देनेवाली इस संवैधानिक व्यवस्था को हटाने की भाजपा की मांग जनसंघ के जमाने से चली […]
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह द्वारा अनुच्छेद 370 पर दिये बयान पर सफाई के बावजूद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के बयान और उस पर आरएसएस के जवाबी हमले से यह मसला फिर चर्चा में है. राज्य को विशेष दर्जा देनेवाली इस संवैधानिक व्यवस्था को हटाने की भाजपा की मांग जनसंघ के जमाने से चली आ रही है. 2014 के घोषणापत्र में भी पार्टी ने यह वादा दोहराया है.
हालांकि वाजपेयी सरकार ने सहयोगी दलों के दबाव में यह मसला छोड़ दिया था. इस बार भाजपा को मिले बहुमत के बाद माना जा रहा था कि इस अनुच्छेद को हटाने की कोशिशें फिर शुरू हो सकती हैं. परंतु, सरकार के कार्यभार संभालने के कुछ ही घंटे के भीतर पीएमओ में राज्यमंत्री द्वारा इस बाबत बयान दिया जाना अचंभित करता है. नरेंद्र मोदी ने बीते दिसंबर में राज्य में एक जनसभा में कहा था कि संविधान के दायरे में यह बहस चलती रहेगी कि अनुच्छेद 370 को बहाल रखा जाये या नहीं, पर कम-से-कम यह चर्चा तो होनी चाहिए कि इस अनुच्छेद से जम्मू-कश्मीर को लाभ हुआ या नहीं.
इस अनुच्छेद में व्यवस्था है कि राष्ट्रपति एक अधिसूचना जारी कर इसे हटा सकते हैं, लेकिन इसके लिए राज्य की संविधान सभा की अनुशंसा अनिवार्य है. 1951 में गठित जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा 1956 में भंग हो चुकी है. इसका अर्थ यह है कि सबसे पहले इस सभा का गठन करना होगा, जो इस अनुच्छेद को हटाने पर विचार करे. अनेक संविधानविदों का मानना है कि संसद द्वारा इसे हटाने की कोशिश जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की स्थिति को जटिल कानूनी प्रक्रिया की ओर ले जा सकती है, जो कश्मीर समस्या को और गंभीर बना देगी.
कश्मीर को लेकर कोई भी राजनीतिक हठधर्मिता घाटी में व्याप्त असंतोष को और गहरा ही करेगी. जरूरत यह है कि पहले इस सवाल पर गौर किया जाये कि इस अनुच्छेद से राज्य का कितना भला हुआ है और अगर ऐसा नहीं हुआ है तो उसके कारणों पर विमर्श होना चाहिए. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा भी है कि सरकार इस मुद्दे पर समुचित सोच-विचार के बाद ही कोई कदम उठायेगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार इस पर कोई भी फैसला लेने से पहले संबद्ध पक्षों को साथ लेकर आम राय बनाने की कोशिश करेगी.