अहिंसक देश में हिंसक भीड़
वसुधैव कुटुंबकम के रास्ते चल कर हमने विश्वगुरु बनने का सपना देखा है. हमारी सांस्कृतिक धरोहर महान संतो और महात्माओं के आदर्शों की बुनियाद पर खड़ी है. इनकी अमर वाणियों ने हमारी आस्था को बल दिया है. फिर हमारी आस्था इतनी कमजोर कैसे हो सकती है कि हम किसी की जान ले लें? अहिंसक देश […]
वसुधैव कुटुंबकम के रास्ते चल कर हमने विश्वगुरु बनने का सपना देखा है. हमारी सांस्कृतिक धरोहर महान संतो और महात्माओं के आदर्शों की बुनियाद पर खड़ी है. इनकी अमर वाणियों ने हमारी आस्था को बल दिया है. फिर हमारी आस्था इतनी कमजोर कैसे हो सकती है कि हम किसी की जान ले लें? अहिंसक देश में यह हिंसक भीड़ कहां से आयी?
‘मॉब लिंचिंग’ का जहर कौन फैला रहा है? हमें सवालों के जवाब ढूढ़ने होंगे, वरना अहिंसा परमो धर्मः की अवधारणा इस भीड़तंत्र के सामने घुटने टेक देगी. इस देश की स्वार्थी राजनीति ने विकास के रास्तों में जाति व धर्म की बारूदी सुरंगें बिछा रखी हैं. विकसित सूचना तंत्रों से नयी पीढ़ी को दी जाने वाली हिंसक खुराकें आनेवाले दिनों को ज्यादा डरावना बना देंगी.
एमके मिश्रा, रातू, रांची