परीक्षा में सुधार

उच्च शिक्षा की महत्वपूर्ण प्रतियोगिता परीक्षाओं का संचालन अब राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) करेगी. नवंबर, 2017 में गठित इस स्वायत्त एजेंसी के जिम्मे संयुक्त इंजीनियरिंग परीक्षा (जेईई) और मेडिकल प्रवेश परीक्षा (नीट) के अलावा प्रबंधन और फार्मेसी की प्रतियोगिताएं तथा कॉलेज शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा भी होंगी. जेईई और नीट की परीक्षाएं साल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 9, 2018 6:47 AM

उच्च शिक्षा की महत्वपूर्ण प्रतियोगिता परीक्षाओं का संचालन अब राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) करेगी. नवंबर, 2017 में गठित इस स्वायत्त एजेंसी के जिम्मे संयुक्त इंजीनियरिंग परीक्षा (जेईई) और मेडिकल प्रवेश परीक्षा (नीट) के अलावा प्रबंधन और फार्मेसी की प्रतियोगिताएं तथा कॉलेज शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा भी होंगी.

जेईई और नीट की परीक्षाएं साल में दो बार तथा कंप्यूटरीकृत होने से न सिर्फ पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी, बल्कि छात्रों को अपनी काबिलियत साबित करने के ज्यादा मौके भी मिल सकेंगे. अब तक ये परीक्षाएं केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा करायी जाती थीं. प्रतियोगिता परीक्षाएं आयोजित करने की जिम्मेदारी और जवाबदेही से छुटकारा पाने के बाद स्कूली शिक्षा की बेहतरी के लिए स्थापित यह बोर्ड बड़े दबाव से आजाद हो जायेगा. हमारे देश में प्रतियोगिता परीक्षाएं कई तरह की मुश्किलों से घिरती रही हैं.

प्रश्न-पत्रों और मूल्यांकन की गुणवत्ता, पारदर्शिता, परचे लीक होने से बचाने और अन्य धांधलियों को रोकने, समय पर परिणाम निकालने तथा छात्रों पर कम-से-कम बोझ डालने जैसी कई चुनौतियां मौजूदा प्रणाली के सामने है. बीते कुछ सालों का हिसाब लगाएं, तो शायद ही कोई सम्मानित परीक्षा बची होगी, जो सवालों के घेरे में नहीं आयी हो. विभिन्न परीक्षाओं में शामिल होनेवाले छात्रों की संख्या लाखों में है. प्रशासनिक या प्रबंधन से जुड़ी एक मामूली चूक भी छात्रों के भविष्य को अधर में लटका सकती है.

हमारी शिक्षा और रोजगार की प्रणाली की अनेक गड़बड़ियों के कारण छात्र बेहद दबाव में होते हैं, जिसका नतीजा हम आत्महत्या जैसी भयावह घटनाओं के रूप में देखते हैं. ऐसे में एक विशेष एजेंसी के अधीन परीक्षाएं कराना तथा जेईई और नीट जैसी परीक्षाओं, जिनमें कई लाख छात्र भाग लेते हैं, को साल में दो बार अनेक दिनों तक कराने का फैसला बहुत सकूनदेह है.

सीबीएसई का बोझ कम होने का लाभ स्कूली शिक्षा प्रणाली को मिलेगा. परीक्षाओं का कड़ा स्तर और पास करने की अधिक अंक सीमा (कट-ऑफ) भी बड़े सवाल रहे हैं, जिनके समाधान की उम्मीद भी नयी व्यवस्था से है. अधिक कट-ऑफ होने से बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग संस्थानों की सीटें खाली रह जाती हैं.

अक्सर देखा गया है कि प्रतियोगिता परीक्षा के सवालों और स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में तालमेल नहीं होता है. गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के अलावा यह भी एक बड़ा कारक है, जिसकी वजह से निजी कोचिंग सेंटरों की चल पड़ी है. अनेक जगहों पर देखा गया है कि बच्चे आठवीं-नौवीं कक्षा से ही कोचिंग करने लग जाते हैं. शिक्षा व्यवस्था के लिए यह स्थिति उचित नहीं कही जा सकती है.

ऐसे में कई मेधावी छात्र आर्थिक अभाव या दूर-दराज में होने के कारण पीछे रह जाते हैं. परीक्षा के तौर-तरीकों और प्रश्न-पत्र तैयार करने के प्रशिक्षण से इन खामियों को दूर करने की पहल स्वागतयोग्य है. उम्मीद है कि नयी एजेंसी पुरानी एजेंसी के अनुभवों से सीख लेते हुए बेहतर प्रणाली दे पाने में सफल हो सकेगी.

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