भाजपा की समझ एवं विपक्षी एजेंडा
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया aakar.patel@gmail.com प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को लगता है कि ‘विपक्ष का एकमात्र एजेंडा मोदी को हटाना है’. इन दोनों ने यह बात स्पष्ट रूप से कई बार अपने साक्षात्कारों और भाषणों में कही है. क्या यह सच है? भाजपा निश्चित रूप से इस बात […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@gmail.com
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को लगता है कि ‘विपक्ष का एकमात्र एजेंडा मोदी को हटाना है’. इन दोनों ने यह बात स्पष्ट रूप से कई बार अपने साक्षात्कारों और भाषणों में कही है. क्या यह सच है?
भाजपा निश्चित रूप से इस बात पर विश्वास करती दिखती है और ऊपर उल्लिखित नेताओं ने इस बात को बार-बार व्यक्त किया है. यह आरोप सही भी हो सकता और गलत भी. चलिए, पहले मान लेते हैं कि आरोप सही है.
तो सवाल यह उठता है कि विपक्ष मोदी को क्यों हटाना चाहता है. इसके दो व्यापक कारण हो सकते हैं. पहला कारण नकारात्मक है, मतलब विपक्ष एक साथ मिलकर देश को बर्बाद करना चाहता है, पर उसका रास्ता अकेले बहादुर मोदी द्वारा अवरुद्ध किया जा रहा है.
दूसरा कारण सकारात्मक हो सकता है, मतलब विपक्ष मोदी से छुटकारा पाना चाहता है, क्योंकि उसे लगता है कि वे एक ऐसी वैकल्पिक सरकार बना सकता है, जो मोदी की सरकार से बेहतर होगी. इस भावना को विपक्ष के कुछ तत्वों की इस समझ से भी जोड़ा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी देश को बर्बाद कर रहे हैं.
इसे बिना लाग-लपेट के साथ देखा जाये, तो ऐसा लगता है कि पहला उद्देश्य इतना हल्का है कि उसे गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है. भारत लंबे समय से एक लोकतांत्रिक देश रहा है, जिसकी एक उत्कृष्ट राजनीतिक व्यवस्था है और राजनीतिक पार्टियां स्वतंत्रता के बाद से ही इसी के अनुरूप आचरण करती हैं.
बहुत-सी पार्टियों की अपनी स्पष्ट विचारधारा है, उनके करिश्माई नेता हैं तथा दशकों से पार्टी के साथ रहनेवाले वफादार समर्थक हैं. इन सभी बातों को ‘एकमात्र एजेंडा’ कहकर खारिज करने का मतलब इतिहास से आंखें चुराना है.
यह भी है कि एकमात्र एजेंडा और एकजुट विपक्ष कहीं दिखायी भी नहीं पड़ रहा है. वास्तविकता यह है कि अभी तक कोई व्यापक गठबंधन बना ही नहीं है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और केरल जैसे कई राज्यों ने अभी तक ऐसा कोई गठबंधन नहीं देखा है और न ही चुनाव के पहले ऐसा कोई गठबंधन बनने की संभावना है. इनमें से कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों को भाजपा और मोदी से कहीं ज्यादा खतरा कांग्रेस से है.
मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई गठबंधन नहीं है, क्योंकि यह सब दो-दलीय राज्य हैं, जहां कांग्रेस की भाजपा या एनडीए गठबंधन से सीधी लड़ाई है.
अब दूसरी संभावना की तरफ देखा जाये. यह आरोप तो गलत है कि नरेंद्र मोदी को हटाना ही विपक्ष का एकमात्र एजेंडा है. परंतु, विपक्ष मोदी का विरोध करने के लिए बहुत ही अजीब चीजें कर रहा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन कोई स्वाभाविक गठबंधन नहीं है. ये दोनों ही पार्टियां अपने राजनीतिक इतिहास में एक-दूसरे के खिलाफ ही लड़ती आयी हैं, तो फिर अब वे एक साथ क्यों आ रही हैं?
इसका जवाब यह है कि विपक्षी पार्टियां ऐसा मोदी के पहले से ही करती आ रही हैं. भारत की राजनीति में 1989 तक विभाजन कांग्रेस बनाम गैर-कांग्रेस के आधार पर हुआ करता था. इंदिरा और राजीव गांधी की पार्टी घमंडी थी और दशकों तक पूरी तरह से वर्चस्व रखने के कारण खतरनाक भी थी.
भाजपा द्वारा अयोध्या के मुद्दे को उठाने और बाबरी मस्जिद को तोड़ने के प्रकरण ने विभाजन के स्वरूप को बदल दिया. कम्युनिस्टों और क्षेत्रीय पार्टियों सहित विपक्ष ने खुद को भाजपा से दूर करना शुरू कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि यह पार्टी भारत के सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा है.
आप यह तर्क दे सकते हैं कि उनका ऐसा मानना गलत था, लेकिन यह कहना भी गलत होगा कि उन्होंने मोदी के कारण ही भाजपा के खिलाफ एकजुट होना शुरू किया है. लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा के साथ होनेवाली इस छुआछूत को ‘शानदार अलगाव’ के रूप में वर्णित किया है, पर यह सिर्फ एक चालाक जुमलेबाजी ही है. हिंदुत्व से अधिकतर भारतीय चिंतित हैं और इसने पार्टियां को भी असहज किया है. यही एकमात्र स्पष्टीकरण है.
बाबरी प्रकरण के बाद हुई भाजपा की जीत का यही मतलब है कि कुछ पार्टियां सत्ता के नजदीक पहुंचते देख अक्सर भाजपा का साथ देने के लिए तैयार रहती हैं, जैसा कि वाजपेयी के दौर में देखा गया और अब नीतीश कुमार की पार्टी ने किया है.
लेकिन, दो पार्टियों- अकाली दल और शिव सेना- को छोड़कर भाजपा को अभी तक कोई स्थायी साथी नहीं मिल सका है. इसका कारण यही है कि अधिकतर पार्टियां भारतीय समाज के साथ हिंदुत्व की करनी को लेकर सचमुच चिंतित हैं.
यदि मोदी और शाह विपक्ष के एकमात्र एजेंडे को लेकर निश्चित हैं, तो उन्हें एक बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. आप हिंदुत्व की बहुसंख्यक राजनीति का विरोध करते हैं, तो आप किसी भी पार्टी के पक्ष में मतदान कर सकते हैं.
आप कम्युनिस्टों, समाजवादियों, जाति आधारित पार्टियों, क्षेत्रीय दलों, निर्दलीय, भाषा-आधारित दलों या भारत के किसी भी राजनीतिक पार्टी को समर्थन दे सकते हैं, लेकिन यदि आप हिंदुत्व का समर्थन करते हैं, तो आपके पास एक ही राजनीतिक पार्टी का विकल्प है, और वह विकल्प है भाजपा.
यह मानना कि 31 फीसदी भाजपा के मतदाता जो कर रहे हैं, वह एकदम पवित्र और राष्ट्रवादी है, तथा अन्य 69 फीसदी मतदाता जो कर रहे हैं, वह अवसरवाद है, तो यह भारतीय राजनीति को देखने का परिपक्व तरीका बिल्कुल भी नहीं है.
यह बात जरूर सच है कि सभी राजनीतिक पार्टियां सत्ता की आकांक्षा रखती हैं और सत्ता को प्राप्त करने के लिए वे कई अजीब चीजें करती हैं.
इसमें मोदी और भाजपा भी शामिल हैं. वे किसी अन्य कारण से सत्ता में नहीं हैं. सभी पार्टियां सोचती हैं कि वे सकारात्मक हस्तक्षेप कर सकती हैं और सभी नेता अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए इतिहास में दर्ज होने की इच्छा रखते हैं.
यही कारण है कि पार्टियां बनायी और चलायी जाती हैं. ऐसा इसलिए नहीं किया जाता है कि उनके पास किसी व्यक्ति के विरोध का एकमात्र एजेंडा यही है.
(अनुवादः मनुकृति तिवारी)