बारिश में जामुन और भुट्टे

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार बारिश के बाद धूल से अटे पेड़ों पर बहार आ गयी है. ऐसा लगता है कि बारिश पेड़ों की साज-सज्जा और रूप-स्वरूप को सुघड़ बनाने के लिए किसी ब्यूटी पार्लर का काम करती है. हर पत्ता चमक रहा है और खिलखिलाता हुआ अपने पास बुला रहा है. घर के पास का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2018 12:04 AM

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

बारिश के बाद धूल से अटे पेड़ों पर बहार आ गयी है. ऐसा लगता है कि बारिश पेड़ों की साज-सज्जा और रूप-स्वरूप को सुघड़ बनाने के लिए किसी ब्यूटी पार्लर का काम करती है. हर पत्ता चमक रहा है और खिलखिलाता हुआ अपने पास बुला रहा है.

घर के पास का जामुन का लहलहाता ऊंचा पेड़, उस पर जितने जामुन ऊपर लटके हैं, उतने ही काले और छोटे-बड़े मोतियों की तरह नीचे बिखरे हैं. जितनी मर्जी हो उतनी बटोर लो. घर ले जाकर धोओ और खाओ.

बाजार में भी ठेले भर-भरकर जामुन बिक रहे हैं, छोटे, बड़े. बचपन में जामुन बेचनेवाले एक छोटी हंडिया या किसी बड़े कुल्हड़ में जामुन और नमक मिलाकर तेजी से हिलाते थे. इन खट्टे-मीठे-नमकीन जामुन को खाने के आनंद के क्या कहने. हो सकता है, बहुत सी जगहों पर, आज भी बेचनेवाले ऐसा ही करते हों.

विदेशों में शायद इस स्वादिष्ट फल को कोई जानता भी न हो. इसके गुण भी कितने. मधुमेह के लिए रामबाण औषधि. मधुमेह में इसके बीजों का पाउडर बनाकर पानी के साथ खाने की सलाह दी जाती है.

पंचतंत्र की बंदर और मगरमच्छ की कहानी तो याद ही होगी, जिसमें बंदर अपने दोस्त मगरमच्छ को मीठे जामुन खिलाया करता था. क्या पता लेखक विष्णु शर्मा की यह कल्पना ही हो. मगरमच्छ जामुन खाते हैं या नहीं, पता नहीं .

जामुन के अलावा बारिश आते ही बाजार में भूने हुए भुट्टों की सोंधी महक अपनी ओर आकर्षित करती है. उन पर नमक और नींबू लगाकर भूने हुए भुट्टे का स्वाद आखिर किसने न लिया होगा. बहुत से बेचनेवाले उन्हें उबालकर, उन पर इमली की चटनी लगाकर बेचते हैं. चाहे जितने पाॅपकार्न खा लिये जाएं, मगर भुट्टे का स्वाद कुछ और ही होता है.

गांव में जब इन्हें चूल्हे की धीमी आग में भूना जाता था, तो इनके दानों की मिठास जैसे कुछ और बढ़ जाती थी. आज बदले वक्त और तमाम किस्म के जंक फूड के बावजूद सड़क पर भुट्टे खाते युवाओं, महिलाओं, पुरुषों को देखा जा सकता है. कई बेचनेवालों के भुट्टे तो इतने मशहूर हो जाते हैं कि दूर-दूर से लोग इन्हें खाने आते हैं.

आज डाइटीशियन स्वस्थ रहने के लिए भूना हुआ गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, चना आदि खाने की सलाह देते हैं, मगर हमारे पुरखे तो जैसे इन बातों को पहले से ही जानते थे.

इसलिए हर गांव में इन्हें भूननेवाले भी मौजूद रहते थे. इन अनाजों का सत्तू भी मिलता है. इन दिनों, भूना हुआ अन्न महानगरों में बड़ी महंगी दुकानों पर मिलता है. और अमीरों का खाना माना जाता है. लेकिन, भुट्टे ने वर्षों से अपनी रिवायत को नहीं बदला है. आज भी अक्सर सड़क के किनारे बरसात के मौसम में भुट्टे भूननेवाले मिल जाते हैं.

खरीदिए, खाइए और आनंद लीजिए. अपने देश की यही विशेषता है कि यहां फसलों का आनंद किसी उत्सव की तरह ही लिया जा सकता है. भुट्टे और जामुन तो दो ही उदाहरण हैं. ऐसे हजारों उदाहरण मौजूद हैं, जिनका संबंध हमारे मौसम, खान-पान और पर्यावरण से है.

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