जातिवाद का जाल
भारत में विद्यमान जातिवाद ने न केवल यहां की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक प्रवृत्तियों को प्रभावित किया अपितु राष्ट्रीय एकता को भी प्रभावित किया है. जहां जातिवाद कई सदियों से अपना पांव जमाये हुए है, वहां की राष्ट्रीय एकता में कमी आना आम बात है. यहां के लोग राष्ट्रहित को भूल कर जातीय गौरव को […]
भारत में विद्यमान जातिवाद ने न केवल यहां की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक प्रवृत्तियों को प्रभावित किया अपितु राष्ट्रीय एकता को भी प्रभावित किया है.
जहां जातिवाद कई सदियों से अपना पांव जमाये हुए है, वहां की राष्ट्रीय एकता में कमी आना आम बात है. यहां के लोग राष्ट्रहित को भूल कर जातीय गौरव को अधिक तरजीह देते हैं. इसका जीता जागता उदाहरण हिमा दास के रूप में देखने को मिला है.
जब धाविका हिमा दास ने आएएएफ में स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रचा दिया, तब लोगों ने राष्ट्रीय एकता में बंध उस पर गर्व न करते हुए, हिमा दास की जाति को जानने में ज्यादा इच्छुक दिखे. यह बात गूगल सर्च देखा जा सकता है.
एक ओर बेटियों से बलात्कार की घटना से समाज चिंतित है, वहीं हिमा दास के ऐसे कदम ने फिर से नारी शक्ति को आसमान पर पहुंचा दिया. इस बात पर गर्व महसूस होना चाहिए, लेकिन इसे जाति से जोड़कर लोगों ने फिर से अपने नीच मानसिकता को उजागर कर दिया. अगर हमारा समाज उसे राष्ट्र हित से जोड़ते, तो यह खुशी की बात होती.
निलेश मेहरा, गोड्डा