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इतिहास के पापों को क्या जानना

अंशुमाली रस्तोगी व्यंग्यकार इन दिनों आलम यह है कि जो कुछ नहीं कर पा रहे, वे इतिहास के पाप गिना रहे हैं. पिछले इतिहास को मिटाकर नया इतिहास रचने की जुगाड़ में लगे हैं. उनका कहना है कि वे नया इतिहास रचकर पुराने पापों को मिटा देना चाहते हैं. सुना है, उनके सारे-के-सारे पुराने पापों […]

अंशुमाली रस्तोगी

व्यंग्यकार

इन दिनों आलम यह है कि जो कुछ नहीं कर पा रहे, वे इतिहास के पाप गिना रहे हैं. पिछले इतिहास को मिटाकर नया इतिहास रचने की जुगाड़ में लगे हैं. उनका कहना है कि वे नया इतिहास रचकर पुराने पापों को मिटा देना चाहते हैं. सुना है, उनके सारे-के-सारे पुराने पापों की पूरी सूची है! सूची में सब दर्ज है कि किसने कब-कब और कहां-कहां पाप किये.

इतिहास में किये गये पापों को एक-एक करके खोजना यकीनन बड़ा काम है. हर किसी के बस की बात नहीं यह. लोग अपने किये पापों का प्रायश्चित तक नहीं कर पाते, मगर वे तो दुनिया को इतिहास के साथ की गयी छेड़छाड़ और पापों की जानकारी दे रहे हैं, उनकी जितनी तारीफ की जाये कम है.

इतिहास मेरा पसंदीदा विषय रहा है. जब मेरे पास पढ़ने को कुछ नहीं होता, तब मैं इतिहास पढ़ता हूं. इतिहास कैसा भी, किसी का भी हो, मुझे पढ़ने से मतलब होता है. इतिहास को बिना पढ़े हम जान ही नहीं सकते कि फलां व्यक्ति का कैरेक्टर बचपन से ही लूज था या जवानी से बुढ़ापे के बीच लूज हुआ. बुरा न मानियेगा, अमूमन इतिहास का पुनर्पाठ अच्छी बातों के लिए कम, खराब बातों के लिए ही अधिक होता है. इस बात का भी इतिहास गवाह है.

इतिहास से सबसे अधिक शिकायत नेताओं को रही है. उनकी शिकायत लाजिमी भी है. लिखनेवाले तो इतिहास लिखकर निकल लिये. उन्होंने यह तक न सोचा कि देश के नेता लोग कैसे और कहां-कहां तक किताबों में दर्ज बातों को जनता के आगे सही-गलत साबित करते रहेंगे. वे राजनीति करें या इतिहास का पुनर्पाठ?

इतिहास में दर्ज बातें या किस्से जब उनकी विचारधारा से मेल नहीं खाते, तो वे मंच से इसके-उसके इतिहास पर तल्ख प्रतिक्रियाएं देने को मजबूर हो ही जाते हैं. राजनीति जो न कराये थोड़ा ही है.

इतिहास किसी नेता की कुर्सी से ऊंचा तो नहीं हो सकता न. वे जनता के सेवक हैं, ना कि इतिहास के. कहना न होगा, इतिहास लेखन ने देश के नेताओं को वाकई बहुत दुख दिये हैं.

मुझे आज तलक यही बात समझ नहीं आयी कि लोग इतिहास लिखते ही क्यों हैं? इतनी सारी बातें-मुद्दे पड़े हैं लिखने को लेकिन नहीं; लिखेंगे इतिहास ही. अजीब बौड़म टाइप जिद है.

आलम यह है, जब जहां किसी से बहस करने लगो, तो वह तुरंत इतिहास की किताबें पढ़ने की सलाह दे डालता है. ताना मारता है, पहले जरा इतिहास तो पढ़ लो. यहां लोगों के पास अखबार पढ़ने तक की फुर्सत नहीं, इतिहास क्या खाक पढ़ेंगे. बहुत कठिन होता है, इतिहास पढ़ना और पढ़कर याद रख पाना.

बेशक, इतिहास मेरा पसंदीदा विषय रहा है, पर दिमाग का दही भी इसने खूब किया है. मैंने तो अपने बच्चों को सख्त हिदायत दे रखी है, इतिहास को छोड़कर कुछ भी पढ़ लेना. क्या रखा है, इतिहास में दर्ज पापों को जानने में!

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