लोकतंत्र का मजाक

17 जुलाई की तीन घटनाएं -झारखंड में स्वामी अग्निवेश पर भीड़ का हमला, झारखंड विधानसभा का सत्र का पहला दिन हंगामे के कारण मात्र 27 मिनट ही चलना और एक न्यूज चैनल के लाइव डिबेट में बुद्धिजीवियों के बीच गाली-गलौज और हाथापाई. यह घटनाएं बताती हैं कि हम लोकतंत्र की कितनी समझ रखते हैं. संसद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2018 7:30 AM
17 जुलाई की तीन घटनाएं -झारखंड में स्वामी अग्निवेश पर भीड़ का हमला, झारखंड विधानसभा का सत्र का पहला दिन हंगामे के कारण मात्र 27 मिनट ही चलना और एक न्यूज चैनल के लाइव डिबेट में बुद्धिजीवियों के बीच गाली-गलौज और हाथापाई.
यह घटनाएं बताती हैं कि हम लोकतंत्र की कितनी समझ रखते हैं. संसद हो, सड़क हो या बुद्धिजीवियों का मंच, हरजगह जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चल रही है. किसी मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं होती, बल्कि आदिम युग वाली असभ्यता हावी है. सदन के भीतर या बाहर, राजनेता हंगामा करते हैं. अब चैनलों में जोर से चिल्लाना लेटेस्ट फैशन है. येन-केन-प्रकारेण सामनेवाले को चुप करवाना ही एकमात्र लक्ष्य होता है. ऐसे में सड़कों पर आम लोग तांडव मचाएं, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि मानसिकता तो वही है.
थोड़ी-बहुत उम्मीद न्यायपालिका से जगती है. कल ही सुप्रीम कोर्ट ने भीड़तंत्र से निपटने के लिए गाइडलाइन जारी किया और सरकार को इसके लिए कानून बनाने को कहा है. वर्तमान स्थिति को देखकर बिल्कुल भी नहीं लगता कि हम लोकतंत्र के लायक हैं.
राजन सिंह, इमेल से

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