पाकिस्तान में सेना की चलेगी
अजय साहनी रक्षा विशेषज्ञ ajaisahni@gmail.com पाकिस्तान में इस बार नेशनल असेंबली के चुनाव में इमरान खान सरकार बनाने की ओर हैं. इमरान की जीत और उसके आगे-पीछे कई ऐसे तथ्य हैं, जिन पर चर्चा होनी चाहिए. उन फैक्टरों पर बात होनी चाहिए, जिन पर चलकर पाकिस्तान में एक नयी सरकार का गठन होने जा रहा […]
अजय साहनी
रक्षा विशेषज्ञ
ajaisahni@gmail.com
पाकिस्तान में इस बार नेशनल असेंबली के चुनाव में इमरान खान सरकार बनाने की ओर हैं. इमरान की जीत और उसके आगे-पीछे कई ऐसे तथ्य हैं, जिन पर चर्चा होनी चाहिए. उन फैक्टरों पर बात होनी चाहिए, जिन पर चलकर पाकिस्तान में एक नयी सरकार का गठन होने जा रहा है.
जिस तरह से वहां कई धार्मिक पार्टियों ने चुनाव में भाग लिया है और सेना ने उन्हें शह दिया है, इससे साफ है कि पाकिस्तान की आगे की राजनीति भी सेना और धार्मिक पार्टियों के कंधे पर ही चलेगी. और यह सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हो रहा है, बल्कि पूरे विश्व में दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी विचारधारा का वर्चस्व बढ़ रहा है, जिसका इस्तेमाल चुनावों में हो रहा है. भारत हो या अमेरिका इसकी सबसे अच्छी मिसाल हैं.
पाकिस्तान चुनाव में बड़े पैमाने पर जोड़-तोड़ हुई है. इसमें शुरू से ही सीधा-सीधा फौज का हाथ रहा है. यह सिर्फ चुनावों की बात नहीं है, बल्कि बहुत पहले, जब टिकट दिये जा रहे थे, तब नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) या फिर दूसरी कई पार्टियों के नेताओं को डरा-धमकाकर चुनाव लड़ने से सेना ने रोक दिया था, या उनको मजबूर किया कि इमरान खान की पार्टी या उनके समर्थन वाली किसी पार्टी से वे चुनाव लड़ें. इन सब घटनाओं के मद्देनजर वहां चुनाव का माहौल ऐसा बना दिया गया था कि लगे कि हर आदमी इमरान खान की पार्टी (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई) का समर्थन कर रहा है. रणनीति यह थी कि पीटीआई ज्यादा से ज्यादा सीटें ले आये, और बाकी समर्थन के लिए धार्मिक पार्टियों से समर्थन मिल जायेगा.
धार्मिक पार्टियों में कुछ दहशगर्द पार्टियां भी थीं. हालांकि, हाफिज सईद की पार्टी की हार हुई है, लेकिन ऐसा नहीं है कि दहशतगर्द पार्टियों को सीटें मिलेंगी ही नहीं, कुछ सीटें तो वे जरूर जीतेंगी. कुल मिलाकर अगर केंद्र में पीटीआई की सरकार बनती है, तो वह पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं होगी. इसमें कई पार्टियों के समर्थन की जरूरत होगी. इसमें ज्यादा उम्मीद धार्मिक पार्टियों से ही है, जिसमें कुछ कट्टरवादी पार्टियां भी शामिल हैं.
पाकिस्तान चुनाव में इस बार एक अहम चीज देखने को मिली. जब नवाज शरीफ देश में लौटे थे, तब शायद पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हुआ था कि ‘ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है’ जैसे नारे लगाये गये थे.
आमतौर पर, जब भी कोई सियासी रैली या जुलूस निकलता है, तो सीधे-सीधे फौज पर ऐसे नारे नहीं उछाले जाते हैं. लेकिन, इस बार पाकिस्तान में यह भी देखने को मिला. इसका एक ही अर्थ है कि फौज सीधे तौर पर पाकिस्तान की राजनीति में दखल रखती है, जो कि एक लोकतांत्रिक देश के लिए कहीं से भी उचित नहीं है. अब पाकिस्तान के पास यह चुनौती तो रहेगी ही कि वह खुद को कितना लोकतांत्रिक बनाये रखता है.
जहां कहीं भी अगर पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बनती है, तो वह थोड़ी सी अस्थिर होकर जरूर चलती है. पाकिस्तान में यह होनेवाला है.
दूसरी चीज यह है कि वहां इस बार के चुनाव में कई ऐसे हथकंडे अपनाये गये, मसलन बीस-बीस साल पुराने मामले निकालकर पीपीपी और पीएमएल-एन के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया. कई जगहों पर, खासकर पंजाब के क्षेत्रों में, जान-बूझकर चुनावों में और परिणामों में देरी की गयी, क्योंकि पंजाब क्षेत्र में नवाज शरीफ का बड़ा वोटबैंक है. इन सब पर कई रिपोर्ट भी आ चुकी हैं. जाहिर है, जब ऐसे मसले पर आम जनता में सवाल उठाये जाते हैं, तो नयी सरकार के लिए ये असुरक्षा की हालत पैदा करते हैं. इमरान इसको अच्छी तरह से संभाल नहीं पायेंगे.
यही वजह है कि पाकिस्तान की नयी सरकार में स्थिरता का अभाव देखने को मिलेगा. अस्थिर सरकार देश में बढ़ रही अराजकता को नहीं रोक पायेगी. इसका नतीजा हिंसा के रूप में सामने आयेगा. कट्टरवादी पार्टियां चुनाव में भले ही बड़े पैमाने पर न जीतें, लेकिन उन्हें जितने भी वोट मिलेंगे, इसका वे दमखम से इस्तेमाल करेंगे कि कम-से-कम उनके पास इतने समर्थक तो हैं.
इन्हें अपना कार्यकर्ता बनाकर देश में अराजकता की स्थिति पैदा करेंगे, क्योंकि उनका तो यही मानना होगा कि उनके समर्थन से सरकार बनी है, तो उनकी मनमानी जायज है. इसलिए हर तरफ से पाकिस्तान चुनाव के बाद इस बात आशंका ज्यादा नजर आ रही है कि पूरे पाकिस्तान में अराजकता बढ़ेगी. लेकिन, यहीं पर यह बात भी देखने को मिलेगी कि पाकिस्तानी सेना को एक चैलेंज भी मिलेगा.
पिछले कुछ साल से विश्वभर में एक ट्रेंड देखने को मिला है कि जो भी पार्टी अत्यंत राष्ट्रवाद की बात करती है, जो सच और झूठ के फर्क को भुलाकर बात करती है, जो लोगों की बुनियादी आशाओं का शोषण करती हैं और धर्म के नाम पर राजनीति करती हैं, वे सत्ता में आती हैं. यही वजह है कि आज अमेरिका कहता है- ‘वी विल मेक अमेरिका ग्रेट अगेन.’ फ्रांस भी ‘ग्रेट फ्रांस’ बनाने की बात करता है. भारत में न्यू इंडिया की बात हो ही रही है. इसी तरह से पाकिस्तान में भी इमरान खान अब एक नये पाकिस्तान की बात कर रहे हैं, जिसके दम पर ही वे चुनावों में बढ़त हासिल कर सके हैं.
तथ्यों और नीतियों के आधार पर चुनाव नहीं लड़े जा रहे हैं, बल्कि धर्मांध और सच-झूठ से परे जाकर लोकलुभावनवादी (पॉपुलिस्ट) आधार पर लड़े जा रहे हैं. इसका हश्र सिर्फ और सिर्फ हिंसा और अराजकता ही है. जो भी नया नेता उभरता है, वह पहले के नेताओं, सरकारों और नीतियों को यह कहकर खारिज कर देता है कि वे सब बेकार थे. इमरान खान ने भी इसी नीति का सहारा लिया और नवाज पर भ्रष्टाचार के बहाने से जमकर हमला बोलते रहे. इसके पहले ओबामा और फिर ट्रंप को देखें. भारत में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार और उसके पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को देखें.
हर जगह यही ट्रेंड देखने को मिलेगा. ऐसे में पाकिस्तान अछूता कैसे रह सकता है. इमरान खान कभी मुशर्रफ का नाम नहीं लेते, पाकिस्तान में लोकतंत्र के ढांचे को पिछले 70 साल से सेना के जरिये ध्वस्त किया जाता रहा है, इस पर भी इमरान ने कुछ नहीं कहा है. सिर्फ नवाज शरीफ पर ही सारे आरोप लगाते रहे हैं. जाहिर है, पाकिस्तान अब पूरी तरह से फौज के कब्जे में है. अब नयी सरकार वैसे ही काम करेगी, जैसा पाक सेना चाहेगी.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)