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वन्य और मानव जीवन में ताल-मेल

रांची जिले के राहे प्रखंड के गांवों में एक हफ्ते के अंदर दो बार जंगली हाथियों ने कहर ढाया. हाथियों ने कई घरों को ध्वस्त कर दिया. बुधवार की रात को बुंडू के भी दो गांवों में हाथियों ने पांच घरों को ढहा दिया. दोनों जगहों पर घंटों तक हाथी उत्पात करते रहे, पर ग्रामीणों […]

रांची जिले के राहे प्रखंड के गांवों में एक हफ्ते के अंदर दो बार जंगली हाथियों ने कहर ढाया. हाथियों ने कई घरों को ध्वस्त कर दिया. बुधवार की रात को बुंडू के भी दो गांवों में हाथियों ने पांच घरों को ढहा दिया. दोनों जगहों पर घंटों तक हाथी उत्पात करते रहे, पर ग्रामीणों की मदद के लिए वन विभाग की टीम नहीं पहुंच सकी. यह कोई पहली बार नहीं हुआ है.

बरसों से वन क्षेत्रों के आसपास स्थित गांवों के लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं. संयुक्त बिहार के समय में पलामू क्षेत्र के एक नेता यमुना सिंह बिहार विधानसभा में आये दिन हाथियों के उत्पात का मामला उठाते रहते थे. इसके चलते मजाक -मजाक में उनका नाम ‘हाथी सिंह’ पड़ गया था. यमुना सिंह इस दुनिया से जा चुके हैं, पर स्थितियों में कोई बदलाव नहीं आया है. हाथी ग्रामीणों के जान-माल का नुकसान करते रहते हैं और वन विभाग नाममात्र मुआवजा देकर हाथ झाड़ लेता है.

हाथियों को भगाने के लिए ग्रामीणों को केरोसिन तेल और पटाखे जैसी मामूली चीजें उपलब्ध कराने में भी ढिलाई बरती जाती है. वन विभाग की जिम्मेदारी सिर्फ जंगलों और जंगली जानवरों का संरक्षण नहीं है, बल्कि मनुष्य और वन्य जीवन के बीच टकराव को टालना भी है. वन विभाग को ऐसी विशेष टीमें गठित करनी चाहिए जो किसी गांव में जंगली जानवरों के पहुंचने की सूचना मिलते ही पहुंच जायें और उन्हें भगायें. जंगली जानवरों का बार-बार इनसानी बस्तियों की ओर आना बताता है कि उनके रहने और खाने-पीने के लिए जगह कम पड़ रही है.

इनसानी दखल की वजह से उनके पर्यावास पर संकट पैदा हो रहा है. आंकड़ों में देखें तो पिछले कुछ सालों में झारखंड में वन क्षेत्र बढ़ा है, लेकिन आंकड़े हमेशा हकीकत बयान नहीं करते. वन क्षेत्र भले बढ़ा हो, पर उनमें ‘विकास परियोजनाओं’ के नाम पर इनसानी दखलअंदाजी बढ़ती जा रही है. लकड़ी व अन्य वन उत्पादों के बढ़ते दोहन की वजह से वनों की सघनता में कमी आयी है. जानवरों के एक वन क्षेत्र से दूसरे वन क्षेत्र में जाने के लिए उसमें निरंतरता की जरूरत होती है, पर यह निरंतरता टूट गयी है. इन वजहों से जंगली जानवरों और इनसानों में टकराव बढ़ रहा है. वन विभाग की जिम्मेदारी है कि इस टकराव को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाये.

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