इस पर तो पूरी फिल्म बन जायेगी!
।। दीपक कुमार मिश्र।। (प्रभात खबर, भागलपुर) चुनावी मौसम खत्म हो गया है. देश में नयी सरकार ने कमान थाम ली है. साथ ही सारी राजनीतिक कवायद व चर्चा थम गयी है. लेकिन, अगर चुनावी बिगुल बजने से लेकर सरकार के शपथ ग्रहण तक की सारी गतिविधियों को समेटा जाये, तो पूरी फिल्म तैयार हो […]
।। दीपक कुमार मिश्र।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
चुनावी मौसम खत्म हो गया है. देश में नयी सरकार ने कमान थाम ली है. साथ ही सारी राजनीतिक कवायद व चर्चा थम गयी है. लेकिन, अगर चुनावी बिगुल बजने से लेकर सरकार के शपथ ग्रहण तक की सारी गतिविधियों को समेटा जाये, तो पूरी फिल्म तैयार हो जायेगी. इसमें ड्रामा है, इमोशन है, सस्पेंस व थ्रिल भी है. यह लब्बोलुआब है दिलीप बाबू व राम खेलावन जी के बीच हुई बातचीत का.
दिलीप बाबू हमारे गांव के बड़े जमींदार हैं और ठाकुर साहब के नाम से ख्यात हैं. राम खेलावन जी गांव के अच्छे किसान हैं और ठाकुर साहब के पक्के मित्र. दोनों के बीच गांव-जवार, खेती-गृहस्थी से लेकर साहित्य, संगीत, राजनीति सब पर चर्चा होती है. दोनों ने स्कूल से लेकर कॉलेज तक साथ-साथ पढ़ाई की. दोनों की दोस्ती आसपास के गांवों तक मशहूर है.
कभी ठाकुर साहब की हवेली में, तो कभी राम खेलावन जी के दालान में दोनों मित्रों की बैठक जमती. इसमें गांव के कई लोग शामिल हो जाते. मैं भी जब गांव जाता तो इस बैठक का हिस्सा जरूर बनता. चाय-पकौड़ी पर देर शाम तक महफिल जमती. केंद्र में नयी सरकार के गठन के दूसरे दिन ठाकुर साहब की हवेली पर महफिल जमी थी. संयोगवश मैं गांव में ही था इसलिए उस चौकड़ी में जा बैठा. ठाकुर साहब ने कहा, ‘‘तुम बताओ, यह चुनाव कैसा था और पहले के चुनावों से कैसे अलग था?’’ मैं कुछ बोलता कि इसके पहले राम खेलावन जी बोल उठे, ‘‘अरे यह चुनाव तो अपने आप में अजूबा था.
अगर कोई लेखक या ‘फिलीम’ निर्माता चाहे तो इस पर ‘सीनीमा’ बना ले. चुनाव में हीरो- हीरोइन, विलेन तो थे ही, ड्रामा, सस्पेंस व इमोशन भी था. चुनाव मैदान में शत्रु भैया से लेकर विनोद खन्ना जैसे हीरो, परेश रावल जैसे विलेन, बसंती से लेकर तुलसी, मुनमुन सेन और नगमा और किरण खेर जैसी हीरोइन, कुमार विश्वास जैसे गीतकार व कवि, बाबुल सुप्रीयो जैसे गायक, बप्पी दा जैसे संगीतकार से लेकर भोजपुरिया स्टार मनोज तिवारी भी चुनाव मैदान में थे. चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह आरोप-प्रत्यारोप के डायलॉग चले वो किसी हिंदी सिनेमा की ही तरह था.
नरेंद्र मोदी जिस तरह संसद भवन में सिर झुका कर गये और उसके बाद अपने संबोधन में भावनाओं को उड़ेला वह इमोशनल फिल्म से कम नहीं था. इसी तरह मंत्रिमंडल के गठन को लेकर अंत-अंत तक जैसी कयासबाजी होती रही वह किसी सस्पेंस फिल्म से कम नहीं थी. चुनाव प्रचार में 3-डी तकनीक व टेक्नोलॉजी का जिस तरह प्रयोग हुआ, वह भी सिनेमा की तकनीक की ही तरह था.’’ मुङो राम खेलावन जी की बात जंची. लग रहा है कि वह दिन दूर नहीं जब अपने देश के चुनाव कैंपन को भी प्लाट मान कर पटकथा लिखी जायेगी और उस पर फिल्म का निर्माण हो जायेगा. राजनीति नाम से सिनेमा आ चुकी है अब चुनाव नाम से भी सिनेमा बन जाये.