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नीतियां डिग्री की मोहताज नहीं

।। कमलेश सिंह।। (इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक) पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ. बोर्ड के रिजल्ट आये हैं. जिनके नंबर अच्छे हैं, उनके सामने अवसर हैं, कॉलेज की पढ़ाई है. जिनके नंबर कम हैं, उनके माता-पिता पॉपुलर मेरठी हो गये हैं. चाचा-दादा ताने कस रहे हैं- इस बार भी नंबर आये हैं तेरे कम, […]

।। कमलेश सिंह।।

(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ. बोर्ड के रिजल्ट आये हैं. जिनके नंबर अच्छे हैं, उनके सामने अवसर हैं, कॉलेज की पढ़ाई है. जिनके नंबर कम हैं, उनके माता-पिता पॉपुलर मेरठी हो गये हैं. चाचा-दादा ताने कस रहे हैं- इस बार भी नंबर आये हैं तेरे कम, रुसवाइयों का क्या मेरे दफ्तर बनेगा तू. बेटे के सर पे देके चपत बाप ने कहा, फिर फेल हो गया है मिनिस्टर बनेगा तू. स्मृति ईरानी मिनिस्टर बन गयी हैं, तो लोग ऊंगलियां उठा रहे हैं कि जो खुद ही बीए पास नहीं, उसे शिक्षा मंत्री कैसे बना दिया जाये. वह देश की नयी मानव संसाधन मंत्री हैं.

बेहद साधारण परिवार में जन्मी स्मृति को पढ़ाई छोड़ कर मॉडलिंग की दुनिया में जाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े. वह एक फास्ट फूड रेस्टोरेंट में बैरा थीं और पोंछा भी लगाती थीं. दिल्ली से आयी इस अकेली लड़की मुंबई में बहुत मुश्किल जिंदगी गुजारते हुए मिस इंडिया सौंदर्य प्रतियोगिता के आखिरी दस में थी. फिर टीवी पर बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में जानी गयी. क्योंकि सास भी कभी बहू थी की तुलसी घर-घर जानी गयी. सफलता की ऊंचाइयों पर थी, तो राजनीति में कूद गयी. नरेंद्र मोदी के खिलाफ धरने पर बैठी. फिर उनके साथ आयी, तो इस लगन से कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी देश की कैबिनेट में जगह बना ली. प्रखर व्यक्तित्व की मालकिन स्मृति कुशल वक्ता भी हैं. बीए नहीं किया. पत्रचार से पढ़ती थीं. पहले साल ही छोड़ दिया.

स्मृति अब मंत्री बन गयी हैं, तो ग्रेजुएट ना होना उनका पीछा नहीं छोड़ रहा. विवाद के बाद ही समाज दो धड़े में है. और अमूमन जैसा होता है दोनों पक्ष अतिरेकी हो गये. एक पक्ष का मानना है कि स्कूल-कॉलेज की शिक्षा बेमानी है. दूसरे का कहना है कि यह शिक्षा जरूरी है. इस विवाद में शिक्षा और डिग्री के बीच का फर्क कहीं गुम हो गया है. डिग्री एक कागज का टुकड़ा है, जो इस बात का प्रमाण है कि आप कॉलेज गये, परीक्षा में बैठे और पास हुए. अगर आप सफल नहीं भी हैं तो यह आपको अवसर दिला सकता है, क्योंकि डिग्री औपचारिक शिक्षा का प्रमाण है. लेकिन जिन्होंने अवसर छीन कर अपने हिस्से का आसमान बना लिया हो, जो काम को चुन उसमें सफल हुए हों, फिर प्रत्यक्ष को प्रमाण कैसा.

हमने लता मंगेशकर से कभी उनकी डिग्री पूछी है क्या? वह गाती हैं तो कानों में मिसरी घोल देती हैं, फिर क्या फर्क पड़ता है कि वह बीए पास हैं या नहीं. महेंद्र सिंह धोनी से हम चौके-छक्के की उम्मीद करते हैं, रसायनशास्त्र के सवालों के जवाब की नहीं. उनके कीर्तिमान दुनिया की सब पीएचडी पर भारी है. एडिसन कॉलेज नहीं गये थे और भौतिकी की कोई परीक्षा पास नहीं की. आज भौतिकी के विद्यार्थी उनकी बनायी रौशनी में रात भर पढ़ते हैं. गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर कभी किसी विश्वविद्यालय में नहीं पढ़े. हां, उन्होंने एक अद्भुत विश्वविद्यालय की स्थापना अवश्य की. कंप्यूटर को घर-घर तक ले जानेवाले बिल गेट्स दुनिया के सबसे अमीर आदमी हुए. उन्होंने स्कूल में ही पढ़ाई छोड़ दी थी. दुनिया में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं. स्कूल-कॉलेज की शिक्षा का अभाव राह में रोड़ा नहीं, बल्कि सफलता की सीढ़ी भी बन सकता है.

स्मृति की आलोचना करनेवाले यह भूल जाते हैं कि लाखों छात्र अभी भी कॉलेज इसलिए नहीं जा पाते, क्योंकि परिस्थिति उनको इसका अवसर नहीं देती. कभी आर्थिक अभाव, कभी पारिवारिक समस्याएं और अक्सर उचित शिक्षा का अभाव लाखों को बीच राह में छोड़ जाता है. एक दुष्प्रभाव भी है. कई बार डिग्री की दौड़ लोगों को शिक्षा से वंचित कर देती है. खास कर तब, जब सब कुछ नौकरी-केंद्रित हो जाता है. एक अंधी दौड़ जिसमें प्रतियोगिता परीक्षा पास करना जीवन का उद्देश्य हो जाता है. नौकरी के लिए डिग्री चाहिए होती है. सफलता के लिए नहीं. शिक्षा और सफलता स्कूल-कॉलेज की मोहताज नहीं. डिग्री वाला प्रमाणपत्र शिक्षक के लिए आवश्यक है.

स्मृति टीचर नहीं, मिनिस्टर बनी हैं. उनके लिए ईमानदार सोच का होना व नीतियों में स्पष्टता जरूरी है. डिग्री तो मनमोहन सिंह के पास थोक में थी, पर देश का खुदरा होकर बिखर जाने के लिए उनकी डिग्रियां जिम्मेवार नहीं हैं. सोच की शिथिलता और नीतिगत बेईमानी ने देश को भटका दिया. लालू प्रसाद तो एमए थे, फिर उनके राज को जंगल राज क्यों कहा जाता है. इंदिरा गांधी ग्रेजुएट नहीं थीं, पर देश की कमान उनके हाथ में थी. आज जनता ने नरेंद्र मोदी के हाथ में वही कमान सौंप दिया है, उनकी डिग्री देखे बिना. डिग्री पर यह बहस बेमानी है. पर क्या औपचारिक शिक्षा बेमानी है? इसका जवाब भी नकारात्मक ही है. हर आदमी का शिक्षित होना जरूरी है. हमारे देश पर निरक्षरता का कलंक अब भी है. सबको शिक्षा जरूरी है, सबके पास डिग्री हो, यह जरूरी नहीं.

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