प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक

कहने को तो प्रेमचंद युग 1917 से 1936 को कहा जाता है, पर समाज में फैली कुरीतियों को देखें, तो उनका युग आज भी जारी है. उनकी रचनाएं आज प्रासंगिक हैं. जिन समस्याओं को उन्होंने अपने साहित्य के द्वारा उकेरा था, वे आज ज्वलंत स्वरूप में हमारे सामने खड़ी हैं. वह एक दूर-द्रष्टा थे. उन्होंने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 1, 2018 6:35 AM
कहने को तो प्रेमचंद युग 1917 से 1936 को कहा जाता है, पर समाज में फैली कुरीतियों को देखें, तो उनका युग आज भी जारी है. उनकी रचनाएं आज प्रासंगिक हैं. जिन समस्याओं को उन्होंने अपने साहित्य के द्वारा उकेरा था, वे आज ज्वलंत स्वरूप में हमारे सामने खड़ी हैं. वह एक दूर-द्रष्टा थे. उन्होंने अभी की समस्याओं को पहले ही भांप लिया था.
उन्हें यूं ही उपन्यास सम्राट का दर्जा नहीं प्राप्त है. उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, रुढ़िवादिता, शोषण, अशिक्षा, अंधविश्वास आदि को चित्रित किया, जो आज भी व्याप्त हैं. उनके अनुसार इन सब समस्याओं में ज्ञान ही हमारा पथ-प्रदर्शक बन सकता हैं. उनकी रचनाओं को सिर्फ पढ़ने की नहीं, बल्कि जरूरत है आत्मसात करने की.
सीमा साही , बोकारो

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