अर्थव्यवस्था पटरी पर

अर्थव्यवस्था के मोर्चे से आश्वस्त करती खबर आयी है. औद्योगिक उत्पादन के लिहाज से मुख्य आठ क्षेत्र (इस्पात, प्राकृतिक गैस, बिजली, कच्चा तेल, सीमेंट, कोयला, उर्वरक, रिफाइनरी) अपनी सुस्त रफ्तार से उबरकर एक बार फिर 6.7 प्रतिशत की वृद्धि के संकेत दे रहे हैं. ये नये आंकड़े भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर आये हाल के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 1, 2018 11:46 PM
अर्थव्यवस्था के मोर्चे से आश्वस्त करती खबर आयी है. औद्योगिक उत्पादन के लिहाज से मुख्य आठ क्षेत्र (इस्पात, प्राकृतिक गैस, बिजली, कच्चा तेल, सीमेंट, कोयला, उर्वरक, रिफाइनरी) अपनी सुस्त रफ्तार से उबरकर एक बार फिर 6.7 प्रतिशत की वृद्धि के संकेत दे रहे हैं.
ये नये आंकड़े भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर आये हाल के दो सकारात्मक आकलनों के मेल में हैं. पिछले महीने विश्वबैंक के नये आंकड़ों के हवाले से खबर आयी कि फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.
इसी तरह एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) का आकलन है कि भारत 2019-20 में भी दुनिया की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था बना रहेगा. एडीबी ने दोनों ही वित्त वर्ष के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि-दर औसतन सवा सात फीसदी से ऊपर रहने की उम्मीद जतायी. लेकिन, इन आकलनों से आलोचक सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि बीते मई माह में औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक बीते सात महीनों के न्यूनतम (3.2 फीसद) पर था और इसकी बड़ी वजह विनिर्माण क्षेत्र में आयी सुस्ती मानी गयी. मई में आठ मुख्य क्षेत्रों की वृद्धि घटकर 4.3 प्रतिशत पर आ गयी थी.
जून की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में रिजर्व बैंक ने भी उत्पादन की उच्च लागत तथा मांग में कमी का हवाला देते हुए चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में औद्योगिक विकास में सुस्ती का अनुमान लगाया था. लेकिन, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के नये आंकड़ों में सीमेंट, रिफाइनरी उत्पाद तथा कोयला सेक्टर की सालाना वृद्धि तकरीबन 11 से 13 फीसद के बीच बतायी गयी है.
हालांकि, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में उत्पादन सालाना आधार पर लगभग ढाई से साढ़े तीन प्रतिशत कम हुआ है, लेकिन बिजली उत्पादन में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. यानी ये आंकड़े औद्योगिक उत्पादन के तेज होने और मांग के बढ़ने का संकेत कर रहे हैं. आगे कोशिश यही होनी चाहिए कि औद्योगिक उत्पादन की बढ़वार वांछित रफ्तार से कायम रहे, जिसके लिए पर्याप्त निवेश जरूरी है. लेकिन, कुछ बातों पर विशेष नजर रखनी होगी.
चिंता का मोर्चा महंगाई का है. जून में खुदरा महंगाई दर बढ़ते हुए पांच फीसदी पर पहुंची थी. यह पांच महीनों का उच्चतम स्तर था और पिछली बैठक में रिजर्व बैंक ने साढ़े चार साल बाद रेपो दर में 25 आधार-अंकों की वृद्धि की थी. अगर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में गिरावट के संकेत नहीं मिलते, तो रिजर्व बैंक रेपो रेट फिर से बढ़ा सकता है. कच्चे तेल की ऊंची कीमतें भी सरकार के लिए सिरदर्द हैं.
ऊंची कीमतों का असर महंगाई पर पड़ता है. सरकार पर पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स घटाने का दबाव है. अगर टैक्स घटते हैं, तो राजकोषीय घाटा संभालने के बारे में सोचना होगा. रुपये की कीमत गिरने से आयात बिल बढ़ा है और उद्योग जगत के लिए कच्चे माल तथा परिवहन मूल्यों में इजाफा हुआ है. सो, रुपये की गिरती कीमतों को थामना भी सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए.

Next Article

Exit mobile version