हिंसा को पराजित करना होगा
सीताराम येचुरी माकपा महासचिव cc@cpim.org शुक्रवार, 20 जुलाई को जब मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के अंत में प्रधानमंत्री मोदी अपना डेढ़ घंटा लंबा भाषण दे रहे थे, उधर राजस्थान के अलवर जिले में अकबर खान गो-तस्करी के आरोप में भीड़ की हिंसा द्वारा मौत के घाट उतारा जा रहा था. भाजपा […]
सीताराम येचुरी
माकपा महासचिव
cc@cpim.org
शुक्रवार, 20 जुलाई को जब मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के अंत में प्रधानमंत्री मोदी अपना डेढ़ घंटा लंबा भाषण दे रहे थे, उधर राजस्थान के अलवर जिले में अकबर खान गो-तस्करी के आरोप में भीड़ की हिंसा द्वारा मौत के घाट उतारा जा रहा था.
भाजपा सरकारों के अंतर्गत कुकुरमुत्ते की भांति पैदा हुई निजी सेनाओं द्वारा हिंसक ढंग से ली गयी जानों पर प्रधानमंत्री ने अब तक रस्मअदायगी के लिए भी चिंता व्यक्त नहीं की है.
‘गोरक्षा’, ‘नैतिक पुलिसिंग’, ‘लव जिहाद’ और ‘बच्चा चोर’ के नामों पर ये सरकारें रक्षक समूहों को लगातार अपने संरक्षण दे रही हैं. अप्रैल 2017 से लेकर अब तक पहलू खान, उमेर खान और अब अकबर खान के रूप में अलवर जिले में भीड़ द्वारा की गयी यह तीसरी हत्या है. पहलू खान एवं अकबर खान के बीच भारत ने भीड़ द्वारा 12 जिलों में की गयी कम-से-कम 46 हत्याएं देखीं, जिनके शिकार मुख्यतः मुस्लिम या दलित रहे हैं.
बहुतों ने यह उम्मीद बांध रखी थी कि अविश्वास प्रस्ताव पर होती चर्चा के ही मध्य प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभिव्यक्त विचारों के अनुरूप यह घोषणा करेंगे कि भीड़ द्वारा हत्याओं के विरुद्ध सरकार संसद के इसी सत्र में एक व्यापक कानून का प्रस्ताव करेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. जैसा इस सरकार के साथ आम रिवाज है, 23 जुलाई को इसने ऐसे कानून के निर्माण पर विचार करने हेतु एक मंत्री समूह का गठन कर दिया. अब तक यह सिद्ध हो चुका है कि ऐसे कदमों का अर्थ सुप्रीम कोर्ट के निदेशों पर फैसले टालना तथा उनमें देर करना ही हुआ करता है.
इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी उनके शब्दों से कहीं अधिक बोलती है, स्वभावतः जिसका अर्थ यह निकाला जाता है कि इस हिंसा तथा अराजकता को सरकार का साफ प्रोत्साहन हासिल है.
ऐसे मुद्दों पर दो तरह की बातें करने के आदी हिंदुत्ववादी बलों का एक धड़ा निजी सेनाओं को संरक्षण प्रदान करता है, वहीं दूसरा धड़ा ऐसे लोगों से अपना कोई संबंध होने से इनकार किया करता है. वह भी तब, जब झारखंड में एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री ऐसे अपराधियों का खुलेआम अभिनंदन करते और उन्हें पुष्पहार पहनाते हैं.
इसी तरह, जम्मू एवं कश्मीर के कठुआ में घटी सामूहिक बलात्कार की वीभत्स एवं अमानवीय घटना को स्थानीय भाजपा नेताओं ने संरक्षण दिया और वकीलों ने उन अपराधियों के विरुद्ध कानूनी उपाय का सहारा लेने से रोकने की कोशिश की. पहलू खान के द्वारा अपनी मृत्युपूर्व घोषणा में नामजद होने के बावजूद उसके हत्यारे मुक्त किये जा चुके हैं.
मोदी के नेतृत्व में चल रही भाजपा सरकार के अंतर्गत पिछले वर्षों के दौरान महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के प्रति कुछ जगहों पर सम्मान व्यक्त किया जाता और उसे एक नायक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है.
इसके बाद भी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) यह दावा करता है कि जब गोडसे ने गांधी पर गोलियां चलायीं, उस वक्त वह संघ का सदस्य नहीं था. नाथूराम के भ्राता ने इस दावे का जोरदार खंडन भी किया है.
चूंकि इस तथ्य की वजह से आरएसएस और उसके तत्कालीन प्रमुख गोलवलकर भारी संकट में पड़े थे, इसलिए उन्हें बचाने के लिए नाथूराम ने अपने बयान में यह कहा था कि मैंने आरएसएस छोड़ दिया था. यहां विचारणीय बिंदु यह नहीं कि तकनीकी रूप से नाथूराम उस वक्त आरएसएस का सदस्य था अथवा नहीं, बल्कि आरएसएस और उसके अन्य अनुषंगी संगठनों की वह विषाक्त विचारधारा है, जो ऐसे हिंसक उग्रवाद को पोषित और प्रोत्साहित करती है.
हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण देने के मुद्दे पर आरएसएस के रिकॉर्ड का इतिहास लंबा है. ये वीडी सावरकर ही थे, जिन्होंने ‘हिंदुत्व’ का नारा गढ़ते हुए साफ तौर पर कहा था कि इसका धार्मिकता से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह एक हिंदुओं का राज्य स्थापित करने की एक राजनीतिक परियोजना है.
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने ‘पूरी राजनीति का हिंदूकरण तथा हिंदू राज्य का सैन्यीकरण’ का नारा दिया. इससे प्रभावित होकर आरएसएस के संस्थापक डॉ हेगडेवार के वैचारिक गुरु डॉ बीएस मुंजे ने इटली की यात्रा कर 19 मार्च, 1931 को वहां के फासीवादी तानाशाह मुसोलिनी से मुलाकात की.
उन्होंने अपनी व्यक्तिगत डायरी में इतालवी फासीवाद द्वारा वहां के युवाओं को दिये जाते सैन्य प्रशिक्षण के प्रति अपना प्रशंसाभाव अभिव्यक्त किया है. इसी तरह, गुरु गोलवलकर ने भी 1970 में कहा कि ‘यह एक सामान्य अनुभव का विषय है कि दुष्ट शक्तियां तर्क तथा मधुर स्वभाव की भाषा नहीं समझतीं. उन्हें बल से ही नियंत्रित किया जा सकता है.’
संप्रदायवाद एवं कट्टरतावाद एक-दूसरे का आहार हुआ करते हैं. अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सैन्य प्रशिक्षण देने के आरएसएस के प्रयास घृणा, हिंसा एवं आतंक का वातावरण बनाने में मदद पहुंचाते हैं, ताकि ‘बल द्वारा नियंत्रण स्थापित किया जा सके.’ यह प्रायः विस्फोटक सांप्रदायिक दंगों का जनक होता है. ऐसा वातावरण हमारे संवैधानिक ढांचे की नींव कमजोर करता है, जो भारतीय गणतंत्र को अत्यंत असहनशील फासिस्ट हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने के आरएसएस के उद्देश्य में सहायक है. यह खतरा पराजित किया ही जाना चाहिए.