बेटा, ख्याल रखना तुम भी बूढ़े होगे!

।। बृजेंद्र दुबे।। (प्रभात खबर, रांची) वैसे तो अपराध की खबरों से अखबार के पóो भरे होते हैं, लेकिन हाल ही मुंबई से सटे ठाणो में जो हुआ, उससे मैं सन्न रह गया हूं. मैं कई दिनों से इस खबर को भूल नहीं पा रहा हूं. यह कोई ऐसी खबर नहीं है, जिस पर चटखारे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 2, 2014 5:50 AM

।। बृजेंद्र दुबे।।

(प्रभात खबर, रांची)

वैसे तो अपराध की खबरों से अखबार के पóो भरे होते हैं, लेकिन हाल ही मुंबई से सटे ठाणो में जो हुआ, उससे मैं सन्न रह गया हूं. मैं कई दिनों से इस खबर को भूल नहीं पा रहा हूं. यह कोई ऐसी खबर नहीं है, जिस पर चटखारे लिये जा सकें. इस खबर को आप लोगों से शेयर कर रहा हूं. जैसा कि मुंबई में रहने वाले मेरे मित्र गजोधर ने मुङो बताया..

हुआ यूं कि ठाणो में 84 साल के गंगाधर सुले (नाम बदला हुआ) और 80 साल की उनकी पत्नी सुनीता सुले वर्षो से एक साथ रह रहे थे. दोनों की एकमात्र विवाहित बेटी है, जो ठाणो में अलग अपने पति के साथ रहती है. गंगाधर बहुत पहले सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं. अभी दो साल पहले ही बेटी ने मां-बाप की शादी की 50वीं सालगिरह भी धूमधाम से मनवायी थी. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक पति-पत्नी के रिश्तों में खटास शुरू हो गयी. खटास कोई ऐसी-वैसी नहीं थी, बल्कि बुढ़ापे में होनेवाले चिड़चिड़ेपन व घटती ताकत से जुड़ी थी.

बात-बात में लड़ पड़ना हर रोज का शगल हो गया. सो एक दिन डंडे से वार करके उन्होंने सो रही पत्नी सुनीता की हत्या ही कर डाली. हत्या करने के बाद गंगाधर को लगा कि जैसे उन्होंने युद्ध जीत लिया हो. आराम से हाथ-मुंह धो कर खुद चाय बना कर पी, फिर पुलिस को इसकी सूचना दी. गंगाधर कहते हैं कि सुनीता की हत्या करके उन्होंने उस पर बड़ा उपकार किया है. आखिर इस बुढ़ापे में उसे अकेलेपन और काम करने की पीड़ा से निजात दिलवा दी. हां, इस मामले में मैंने अपना भी भला किया. घर में दीवारें ताकने से बेहतर है कि जेल में कैदियों के साथ घुल-मिल कर बाकी जीवन बिताने का मौका मिलेगा. अपने न सही कैदी मेरी व्यथा समङोंगे और मुझसे प्रेम से बात करेंगे. बूढ़ा हूं, जेल में काम भी कम ही करना पड़ेगा.

गंगाधर के विचार जानकर मुङो गहरा सदमा पहुंचा है. अपने देश में भी बुढ़ापा अभिशाप बनता जा रहा है. स्वार्थ में अंधे बच्चे बूढ़े मां-बाप को अकेले जीने के लिए छोड़ दे रहे हैं. जिससे उनकी जिंदगी नरक बन गयी है. औरों की क्या कहूं. मैंने भी तो यही किया. मां बुलाती रहीं.. बेटा, अब मुझसे काम नहीं होता.. चला-फिरा नहीं जाता.. घर आ जाओ, लेकिन मैं मां को टालता रहा. एक दिन खबर आयी कि मां बहुत बीमार हैं. मुङो लगा कि घर जाना ही होगा, नहीं तो लोग क्या कहेंगे. गांव जाने की तैयारी कर ही रहा था कि फिर फोन आ गया.. मां चल बसीं. अब तो जाना ही था, गया भी. लेकिन यकीन के साथ कहता हूं कि मैं अपनी मरी मां के चेहरे से आंख नहीं मिला पाया. मुङो आज भी लगता है कि मैंने मां की सेवा नहीं की..उन्हें अभी रहना था. मुङो लगता है कि मां ने यही सोच कर दम तोड़ा होगा कि.. मेरी तो कट गयी, बेटा मैं जा रही हूं. अपना ख्याल रखना, तुम भी तो बूढ़े होगे.. इसीलिए बुढ़ापे में गंगाधर ने जो कदम उठाया उससे मैं सन्न रह गया हूं.

Next Article

Exit mobile version