सबका समुचित उपचार

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘आयुष्मान भारत’ योजना की घोषणा के साथ देश स्वास्थ्य सेवा के विस्तार की दिशा में एक ठोस कदम उठा चुका है. सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) के अंतर्गत सार्विक स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने का लक्ष्य भारत को 2015 तक पूरा करना था. अब नयी समय-सीमा 2030 है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2018 5:57 AM

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘आयुष्मान भारत’ योजना की घोषणा के साथ देश स्वास्थ्य सेवा के विस्तार की दिशा में एक ठोस कदम उठा चुका है. सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) के अंतर्गत सार्विक स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने का लक्ष्य भारत को 2015 तक पूरा करना था. अब नयी समय-सीमा 2030 है.

सेहत पर सरकार अभी कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का करीब सवा फीसदी ही खर्च करती है और उपचार के कुल खर्च का 67 फीसदी लोगों को अपनी जेब से देना पड़ता है. आर्थिक तंगी के कारण बड़ी तादाद में लोग समुचित इलाज नहीं करा पाते, जिससे मौतें होती हैं या बीमारी बढ़ती जाती है. सालाना लगभग साढ़े पांच करोड़ लोगों को उपचार पर खर्च के बोझ से गरीबी रेखा से नीचे का जीवन जीने पर मजबूर होना पड़ता है. ‘आयुष्मान भारत’ से ऐसे लोगों को बड़ी राहत मिल सकेगी. यह बीमा-आधारित सरकारी खर्च पर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने की दुनिया की सबसे बड़ी योजनाओं में एक है.

इसके तहत 50 करोड़ से ज्यादा नागरिकों को सालाना पांच लाख रुपये का बीमा कवच मिलेगा. नामांकित लोगों को सरकारी और निजी अस्पतालों में भर्ती होने पर मुफ्त और अत्याधुनिक चिकित्सा हासिल होगी. देश में फिलहाल 43.7 फीसदी लोगों के पास ही कोई स्वास्थ्य बीमा है. इस योजना के पूरी तरह अमल में आने पर बीमित लोगों की संख्या बहुत बढ़ जायेगी. चूंकि आयुष्मान योजना के अंतर्गत 1.5 लाख आरोग्य केंद्र और 24 नये सरकारी मेडिकल कॉलेज तथा अस्पताल खोले जाने हैं. इससे स्वास्थ्य सुविधा के मामले में शहर और गांव की खाई को पाटने में भी बड़ी मदद मिलेगी.

भारतीय उद्योग परिसंघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य सेवा ढांचे का 70 फीसदी हिस्सा सिर्फ 20 शहरों तक सीमित है और 30 फीसदी भारतीय (ज्यादातर ग्रामीण) प्राथमिक स्तर के इलाज से भी वंचित है. देश में 2014 में पंजीकृत चिकित्सकों की संख्या 9.4 लाख ही थी यानी औसतन 11,528 लोगों के लिए बस एक पंजीकृत चिकित्सक उपलब्ध है. छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और बिहार जैसे कुछ राज्यों में यह अनुपात और भी कम है. औसतन 1,833 मरीजों के लिए सरकारी अस्पतालों में बस एक बिस्तर है और हर रेफरल सरकारी अस्पताल पर औसतन 61 हजार लोगों के इलाज का भार है.

इस योजना की सफलता की एक कसौटी यह भी होगी कि इससे बुनियादी संसाधनों की कमी दूर करने में कितनी मदद मिलती है. चूंकि योजना का खर्च केंद्र और राज्यों को वहन करना है, सो सरकारों का आपसी सहयोग भी बहुत जरूरी है. इस मामले में गरीबी रेखा से नीचे के व्यक्तियों को 30 हजार रुपये की राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अनुभव अच्छे नहीं रहे थे. इसके साथ ही निजी क्षेत्र के अस्पतालों और बीमा कंपनियों को भी बढ़-चढ़कर स्वस्थ भारत के लिए सक्रिय होना होगा.

Next Article

Exit mobile version