इस भीषण गर्मी में जब उत्तर प्रदेश में बिजली कटौती हुई, तो बवाल मच गया. लेकिन यह स्थिति कमोबेश देश के कई राज्यों और शहरों तक है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. इसकी स्थिति बिजली की समस्या के मायने में बद से बदतर बनी हुई है. शहरी इलाकों में तो हालात बेहतर करने के प्रयास जारी हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों की हालात दयनीय बनी हुई है.
इस राज्य में कई इलाके ऐसे भी हैं, जहां लोगों को पूरे सप्ताह भर में कुछ ही घंटे बिजली मिल पाती है. ऐसा लगता है मानो लोगों को तसल्ली देने के लिए बिजली आती है. ऐसा ही एक क्षेत्र है गिरिडीह जिले के राज धनवार के पास नवसृजित अनुमंडल खोरिमहुआ. यहां बिजली रहना एक खबर है, जबकि बिजली नहीं रहना सामान्य बात है. दशकों से लगातार आंदोलन के उपरांत वर्तमान विधायक सड़क जाम करने के बाद धरने का सहारा ले रहे हैं. आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस मामले को लेकर राजनीति तेज हो गयी है.
कांग्रेस, भाकपा माले, भाजपा सरीखी पार्टियां भी इस मामले पर आंदोलन की तैयारी कर रही हैं लेकिन जनता क्या चाहती है इसे जानने की कोशिश कोई नहीं कर रहा है. पिछले दिनों इलाके के लोगों ने विशाल बैठक करके सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से कहा कि हमें बिजली नहीं चाहिए, बिलिंग बंद कराओ और पूरे इलाके को ‘नो पॉवर जोन’ घोषित कराओ. पैसे देने के बाद भी बिजली नहीं मिले तो यह मामला भी उपभोक्ता संरक्षण के तहत आना चाहिए. यह कैसी सरकार है जो पर्याप्त संसाधन रहने के बाद भी बिजली मुहैया नहीं करा पाती है, जबकि उपभोक्ता पैसे देने में कोताही नहीं करते. देश में व्याप्त बिजली समस्या के समाधान के लिए कभी कोई ठोस कार्ययोजना क्यों नहीं बनती?
डी कृष्णमोहन, राजधनवार, गिरिडीह