सरकार करे जन सुरक्षा की चिंता

झारखंड में बिगड़ती कानून व्यवस्था का सच किसी से छिपा नहीं है. राजधानी रांची हो या लौहनगरी जमशेदपुर, विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वैद्यनाथधाम (देवघर) हो या धनबाद. राज्य के बड़े शहरों में कानून व्यवस्था की स्थिति दिन ब दिन बदतर होती जा रही है. जब शहरों का ये हाल है, तो ग्रामीण क्षेत्रों की हालत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 4, 2014 5:05 AM

झारखंड में बिगड़ती कानून व्यवस्था का सच किसी से छिपा नहीं है. राजधानी रांची हो या लौहनगरी जमशेदपुर, विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वैद्यनाथधाम (देवघर) हो या धनबाद. राज्य के बड़े शहरों में कानून व्यवस्था की स्थिति दिन ब दिन बदतर होती जा रही है. जब शहरों का ये हाल है, तो ग्रामीण क्षेत्रों की हालत समझी जा सकती है. नक्सलग्रस्त क्षेत्रों से जूझना सरकार के लिए पहले से ही बड़ी चुनौती है.

ऐसे में जब यह पता चलता है कि राज्य पुलिस के 17,500 से अधिक पद रिक्त हैं, तो चिंता बढ़ जाती है. सुरक्षा बलों की हालत से सभी वाकिफ हैं. उनकी जिंदगी, उनकी दिनचर्या कितनी कठिन है यह किसी से छिपा नहीं है. आखिर इतने कम संख्या बल से राज्य की विधि व्यवस्था को दुरुस्त रखना कैसे संभव है? झारखंड पुलिस में पिछले तीन साल से नियुक्ति प्रक्रिया करीब-करीब बंद है. पुलिस मुख्यालय केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के आलोक में नियुक्ति करना चाहता है.

तीन साल पहले पुलिस मुख्यालय ने नयी नियुक्ति नियमावली का प्रस्ताव सरकार को भेजा भी, लेकिन अब तक सरकार ने स्वीकृति नहीं दी है. जिला बल में 55,291 और जैप में 12,947 स्वीकृत पद हैं. जिला बल में करीब 14 हजार और जैप में करीब 3500 रिक्तियां हैं. नयी नियुक्ति नियमावली नहीं लागू होने और रिक्ति बढ़ने को लेकर गृह मंत्रालय ने भी करीब चार माह पूर्व राज्य सरकार को पत्र लिख कर चिंता जतायी थी. और तो और अगस्त 2013 में गृह मंत्रालय ने पुलिस आधुनिकीकरण मद से एक हजार बाइक खरीदने के पुलिस मुख्यालय के प्रस्ताव को स्वीकृत दिया था. जिलों के एसपी नक्सल ऑपरेशन के लिए बाइक की मांग लंबे समय से करते रहे हैं.

केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी के बाद पुलिस मुख्यालय ने राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा. लेकिन छह माह बीतने के बाद भी पुलिस मुख्यालय को सरकार की मंजूरी नहीं मिली है. यह स्थिति सिर्फ हास्यास्पद ही नहीं बल्कि चिंताजनक भी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सुरक्षा का मुद्दा राज्य व केंद्र के बीच अहम का टकराव होकर लोगों की जान-माल की सुरक्षा का मुद्दा बनेगा. क्योंकि राज्य में कानून और विधि व्यवस्था कायम रहे, लोग खुद को महफूज समङों. सरकारों की यह तो पहली प्राथमिकता होनी ही चाहिए.

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