बिहार की जरूरत है विशेष दर्जा
राघव शरण पांडेय सदस्य, बिहार विधानसभा एवं पूर्व पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस सचिव, भारत सरकार raghaw_pandey@hotmail.com भारत और चीन पूरी दुनिया के बरक्स बेहतर गति से प्रगति कर रहे हैं और इन देशों के पास बहुसंख्या में युवा हैं. क्रय शक्ति क्षमता के लिहाज से क्रमशः चीन, अमरीका और भारत आज दुनिया की तीन सबसे […]
राघव शरण पांडेय
सदस्य, बिहार विधानसभा एवं पूर्व पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस सचिव,
भारत सरकार
raghaw_pandey@hotmail.com
भारत और चीन पूरी दुनिया के बरक्स बेहतर गति से प्रगति कर रहे हैं और इन देशों के पास बहुसंख्या में युवा हैं. क्रय शक्ति क्षमता के लिहाज से क्रमशः चीन, अमरीका और भारत आज दुनिया की तीन सबसे प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, ‘भारत की अर्थव्यवस्था एक ऐसा हाथी है, जो दौड़ना शुरू कर चुकी है.’
लेकिन, भारत की जनसंख्या के 10 प्रतिशत हिस्सेदार, तीसरे बड़े राज्य बिहार की कहानी अलग है. ईसा पूर्व की छठीं सदी से लेकर 1000 ईस्वी के कालखंड में, खासकर मौर्य एवं गुप्त राजवंश के दौरान, बिहार सत्ता, शिक्षा और संस्कृति का केंद्र था. अब सवाल यह है कि जब भारत अपने गौरव को फिर हासिल कर रहा है, तो ऐसी सूरत में बिहार कहां खड़ा मिलेगा?
आज बिहार, भारत के अन्य राज्यों में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य है. बिहार की प्रति व्यक्ति आय 35,590 रुपये (2016-17) है, जो 1,03,870 रुपये/ व्यक्ति की राष्ट्रीय औसत का तीसरा हिस्सा है. सन् 1960 में सबसे गरीब बिहार की तुलना में सबसे अमीर राज्य की प्रति व्यक्ति आय दोगुनी थी, जो अब पांच गुनी हो गयी है.
आईडीएफसी के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के तीन सबसे अमीर राज्यों की प्रति व्यक्ति आय, तीन सबसे गरीब राज्यों की तुलना में 1960 के 150 प्रतिशत से बढ़कर 300 प्रतिशत ज्यादा हो गयी है.
यह तेजी 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद बढ़ी है. इसके विपरीत, 1975 से 2015 के दौरान चीन में क्षेत्रीय असमानता आधी हो गयी है. वर्ष 2009 के बाद, नीतीश कुमार के नेतृत्व में, बिहार ने 11 प्रतिशत की सर्वाधिक विकास दर देखी है. बिहार का जनसंख्या घनत्व 1100 व्यक्ति/ वर्ग किमी से अधिक है, जो देश की औसत से लगभग तीन गुना अधिक है. जनसंख्या में 25 वर्ष से कम आयु वर्ग की हिस्सेदारी 58 प्रतिशत है और जनसंख्या वृद्धि दर भी सर्वाधिक है.
इससे स्पष्ट है कि यहां मानव संसाधन विकास के प्रयासों की अधिक आवश्यकता है. बिहार की स्थिति अफ्रीका के माली और चाड जैसे क्षेत्रों की तरह बनी हुई है, जो वैश्विक स्तर पर कहीं नहीं ठहरती. आंकड़ों के अनुसार, अगर वैश्विक आबादी 100 है, तो कम-से-कम 90 लोगों का जीवनस्तर बिहार के एक औसत व्यक्ति से बेहतर है. वहीं 60-70 लोगों का जीवनस्तर एक औसत भारतीय से बेहतर है. इससे यह पता चलता है कि भारत की स्थिति खराब है और बिहार की बेहद खराब.
संतुलित क्षेत्रीय विकास करने के लिए नीतियों में बड़े बदलाव की जरूरत है. वर्ष 1952 में, एक बड़ा हस्तक्षेप औद्योगीकरण के रूप में सस्ते प्राकृतिक संसाधनों वाले अविभाजित बिहार व भारत के कई हिस्सों में शुरू हुआ.
लेकिन बिहार को इसका लाभ नहीं मिला. वर्ष 2000 में झारखंड बनने के बाद हालात और भी बदतर हुए हैं. बिहार ने औद्योगीकरण के साधन खो दिये. अब राज्य के पास रोजगार और आर्थिक विकास के लिए संसाधन सीमित हैं. अपने बजटीय संसाधनों को पूरा करने के लिए केंद्र पर बिहार की निर्भरता अधिक है. खराब बुनियादी ढांचे के वजह से बिहार के लिए बाहरी निजी निवेश पाना बहुत मुश्किल है.
यह देश और विदेश से निवेशकों को लुभाने के लिए अलग से कोई कार्यक्रम नहीं चला सकता. आर्थिक उदारीकरण ने भी क्षेत्रीय स्तर पर गैर-बराबरी बढ़ायी है. माल और सेवा कर (जीएसटी) जैसी बड़ी नीति ने भी पिछले साल निश्चित रूप से सरकार के समग्र राजस्व को बढ़ाने का मौका दिया था और अंतरराज्यीय व्यापार के लिए बाधाएं भी कम हुई थी. लेकिन राज्यों ने राजकोषीय स्वायत्तता को निवेशकों को लुभाने में खो दिया.
निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा देने की मांग की. इससे औद्योकीकरण को बढ़ावा देने हेतु निजी निवेश के लिए कर तथा अन्य प्रोत्साहन मिलेगा. इससे राज्य को ऋणमुक्त होने में भी मदद मिलेगी. वर्ष 2017-18 का बिहार का राजकोषीय घाटा जीडीपी के बरक्स 7.5 प्रतिशत पर पहुंच गया है, जो तीन प्रतिशत की स्वीकार्य सीमा से ज्यादा है.
तकनीकी रूप से बिहार विशेष श्रेणी का राज्य होने की पात्रता नहीं रखता, लेकिन इसके अंतर्गत आनेवाले राज्यों से यह बदतर स्थिति में है. नियमानुसार, राज्य का भौगोलिक रूप से वंचित और विरल आबादी वाला होना आवश्यक है. पहाड़ी क्षेत्रों में राज्यों को इन शर्तों के तहत अर्हता प्राप्त है, जबकि बिहार के पास यह योग्यता नहीं है.
केंद्र सरकार विशेष श्रेणी का राज्य होने की पात्रता के मानदंडों में संशोधन करने से हिचक रही है. इसके पीछे यह वजह मानी जा रही है कि बिहार को शामिल करने से कई अन्य राज्यों से भी मांग उठ सकती है.
कानून-व्यवस्था में सुधार और व्यापार सुगमता के लिए बिहार शासन में व्यापक बेहतरी की आवश्यकता है. लेकिन, विशेष श्रेणी के राज्यों की अवधारणा पर दोबारा गौर नहीं करने की मजबूरियों के बावजूद, केंद्र को पिछड़े राज्यों में निजी निवेश को लुभाने के लिए करों में रियायत देने और एक प्रभावी पैकेज देने के लिए एक नीतिगत ढांचा बनाने की जरूरत है . यही वे जरूरी कदम हैं, जिसे चीन ने अपने मध्य और पश्चिम के पिछड़े प्रांतों के लिए लागू किया था और अब भारत को भी करना चाहिए.