दोस्ती की यादों का एलबम

मुकुल श्रीवास्तव टिप्पणीकार sri.mukul@gmail.com बारिश के मौसम में सिर्फ पानी नहीं बरसता, भावनाएं भी बरसती हैं. एहसास से भीगे इस मौसम में मैं थोड़ा फलसफाना हुआ जा रहा हूं. जिंदगी का असल मतलब तो रिश्ते बनाने और निभाने में ही है. जिंदगी कैसी भी हो, पर खूबसूरत तो है ही. इसकी असल खूबसूरती तो रिश्तों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 30, 2018 7:52 AM

मुकुल श्रीवास्तव

टिप्पणीकार

sri.mukul@gmail.com

बारिश के मौसम में सिर्फ पानी नहीं बरसता, भावनाएं भी बरसती हैं. एहसास से भीगे इस मौसम में मैं थोड़ा फलसफाना हुआ जा रहा हूं. जिंदगी का असल मतलब तो रिश्ते बनाने और निभाने में ही है. जिंदगी कैसी भी हो, पर खूबसूरत तो है ही. इसकी असल खूबसूरती तो रिश्तों से ही है. सोचिये जरा कि बारिश हो रही हो और आपके आस-पास न लोग हों और न कोई यादें, तब क्या आप जिंदगी का मजा ले पायेंगे? जितने लोग मिले-बिछड़े मुझसे, वे सब याद नहीं हैं.

लेकिन हां, कुछ दोस्त ऐसे हैं, जो मेरे साथ नहीं हैं, मगर उनकी यादें मेरे साथ हैं, जिनके साथ का लुत्फ मैं बारिश में उठा रहा हूं. बारिश का मौसम हमेशा नहीं रहता. वैसे ही रिश्ता कोई भी हो, हमेशा एक जैसा नहीं रहता. दोस्ती को ही लीजिये, यह रिश्ता इसलिए खास है, क्योंकि सामाजिक रूप से इसको निभाने का कोई मानक नहीं है, फिर भी बाकी रिश्तों में यह रिश्ता सबसे खास होता है, क्योंकि दोस्ती हम किसी से पूछ के नहीं करते. यह तो बस हो जाती है. जो तेरा है वह मेरा है जैसा प्यारा-सा हक किसी और रिश्ते में नहीं हो सकता.

तमाम दोस्तों में हमारा कोई खास दोस्त जरूर होता है. हमारा सबसे बड़ा राजदार, जिसको हम प्राथमिकता देते हैं, पर दोस्ती का इम्तिहान तो तब शुरू होता है. जब जिंदगी में नये दोस्त बनते हैं. यहां कहानी में थोड़ा ट्विस्ट है.

कई बार हम जिसे अपना सबसे अच्छा दोस्त समझ रहे होते हैं, वह बहुतों का सबसे अच्छा हो तो? तब शुरू होती है समस्या. अब भाई उस दोस्त को सबसे दोस्ती निभानी है और हम हैं कि चाहते हैं वह हमें उतनी प्राथमिकता दे जितनी हम उसे देते हैं.

तब शुरू होता है इस रिश्ते का असली इम्तिहान- तुम मुझे फोन नहीं करते, तो मैं क्यों करूं, तुम्हारे पास तो समय ही नहीं है, ऐसी बातों से शुरू हुआ यह सिलसिला शक और लड़ाई-झगड़े में तब्दील हो जाता है. ऐसा क्यों होता है? क्योंकि दोस्ती में विश्वास का तत्व गायब होने लगता है. मेसेज लिख कर डिलीट कर देना, फोन करते-करते रुक जाना.

ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वह हक गायब हो जाता है, जो उस ‘दोस्ती’ की जान हुआ करता था और इसके लिए किसी एक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. इसलिए दोस्ती जब दरकती है, तो कष्ट बहुत ज्यादा होता है, क्योंकि इस रिश्ते के चलने या न चलने के पीछे सिर्फ हम ही जिम्मेदार होते हैं, और किसी भी रिश्ते में मांग नहीं की जाती है.

रिश्ते तो वही चलते हैं जिनमें प्यार, अपनापन और विश्वास अपने आप मिल जाता है, मांगा नहीं जाता. और अगर दोस्ती में हमें इन सब चीजों की मांग करनी पड़ रही है, तो समझ लीजिये कि आपने सही शख्स से दोस्ती नहीं की है.

दोस्ती देने का नाम है. आपने अपना काम किया, पर बगैर किसी अपेक्षा के अपनी कद्र खुद कीजिये जो दोस्त आपकी कद्र न करे, उसके जीवन से चुपचाप निकल जाइए, ताकि कल किसी बारिश में आप जब पीछे मुड़कर देखें, तो यह पछतावा न हो कि आपके पास दोस्ती की यादों का एलबम सूना है.

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