राहत की पहल

आंगनबाड़ी और आशाकर्मियों का मानदेय बढ़ाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा कुपोषण के कलंक को मिटाने और महिला सशक्तीकरण की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है. इन दोनों योजनाओं में कार्यरत महिलाएं बरसों से उम्मीद लगाये हुए थीं कि उनके काम के महत्व और गंभीरता का आकलन करते हुए सरकार समुचित मानदेय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 13, 2018 2:37 AM

आंगनबाड़ी और आशाकर्मियों का मानदेय बढ़ाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा कुपोषण के कलंक को मिटाने और महिला सशक्तीकरण की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है. इन दोनों योजनाओं में कार्यरत महिलाएं बरसों से उम्मीद लगाये हुए थीं कि उनके काम के महत्व और गंभीरता का आकलन करते हुए सरकार समुचित मानदेय देगी और अन्य कामगारों की तरह उन्हें भी सामाजिक सुरक्षा के लाभ मिलेंगे. देर से ही सही, पर यह उम्मीद अब एक हद तक पूरी हो गयी है. मानदेय बढ़ाने के साथ आशाकर्मियों को प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना तथा सुरक्षा बीमा योजनाओं का भी लाभार्थी बनाया गया है.

इस घोषणा से देशभर के करीब 27 लाख आंगनबाड़ी तथा 12 लाख आशा कर्मी लाभान्वित होंगे. कुपोषण मिटाने के लिहाज से समेकित बाल-विकास कार्यक्रम बहुत अहम है. इसके के जरिये छह साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती स्त्रियों तथा नवजात शिशुओं के माताओं को पोषाहार प्रदान किया जाता है. विद्यालय जाने से पहले की शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और पोषण से जुड़ी जानकारी देना भी इसी कार्यक्रम के दायरे में है. यह कार्य राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का अहम हिस्सा है और जमीनी स्तर पर इसकी जिम्मेदारी आंगनबाड़ी केंद्रों तथा मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्यकर्मियों (आशा) के कंधों पर है.

ये कर्मी कुपोषण के मोर्चे पर चल रही लड़ाई की अगली पांत में तो हैं, परंतु प्रशिक्षण, संसाधन, मानदेय, सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभ के मामले में उनकी दशा दयनीय है. लगभग 14 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों के सहारे करीब 10 करोड़ लोगों को पोषाहार, टीकाकरण, शिक्षा आदि जैसी सेवाएं मुहैया करायी जाती हैं. लेकिन आंगनबाड़ी कर्मियों का मानदेय (अब तक 3,000 रुपये) प्रति व्यक्ति मासिक आय (7,208 रुपये) से बहुत कम था. आशा कर्मियों के मामले में तो स्थिति और भी खराब थी. ऐसे में प्रधानमंत्री की घोषणा से लाखों आंगनबाड़ी तथा आशाकर्मियों में उत्साह का संचार होगा.

ध्यान देने की एक बात यह भी है कि ग्रामीण इलाकों में आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन कर रही ज्यादातर महिलाएं बहुत कम आमदनी वाले परिवारों की हैं. इनमें बड़ी संख्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं की है. सो, समेकित बाल-विकास कार्यक्रम कुपोषण मिटाने के लिहाज से ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों की महिलाओं की आमदनी बढ़ाने और उनके सशक्तीकरण में भी मददगार है. बहरहाल, इन महिलाकर्मियों के काम को व्यापकता से देखने की आवश्यकता है. किसी आंगनबाड़ी कर्मी के काम की गुणवत्ता उसे प्राप्त प्रशिक्षण, संसाधन, सुविधाओं और सामग्री की उपलब्धता आदि कई बातों पर निर्भर करती है. ऐसे में उन्हें समुचित मानदेय और लाभ देने के अलावा इन सहायक पहलुओं पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए.

किसी आंगनबाड़ी कर्मी के काम की गुणवत्ता उसे प्राप्त प्रशिक्षण, संसाधन, सुविधाओं और सामग्री की उपलब्धता आदि कई बातों पर निर्भर करती है. इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

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