प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मेरी जीवनी स्कूलों में न पढ़ायें’ कह कर न केवल प्रशंसनीय काम किया, बल्कि जो लोग पाठय़पुस्तकों में स्थान पाने के लिए सत्ता का सहारा लेते हैं, उन्हें अपने आचरण पर विचार करने के लिए प्रेरित भी किया है. मोदी ने एक बार फिर देश को यह बताया है कि वह व्यक्ति पूजा के खिलाफ हैं. शपथ-ग्रहण समारोह में मौजूद चार हजार लोगों में उनके परिवार का कोई भी सदस्य उपस्थित नहीं था.
ऐसी भीड़ में वह अपने परिवार के सदस्यों को आसानी से खपा सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. अगर उनकी जगह कोई और होता, तो पक्के तौर पर उसका परिवार सभा स्थल की पहली पंक्ति में होता. मोदी की सादगी और देश के प्रति प्रेम को देख कर तो यही लगता है कि भारत को जिस नेता का वर्षो से इंतजार था, वह अब खत्म हुआ है. देखना यह है कि मोदी देश के लिए क्या करते हैं.
कमलेश कुमार झा, दुमका