संयुक्त राष्ट्र की एक नयी रिपोर्ट का आकलन है कि साफ-सफाई, स्वच्छ पेयजल, बुनियादी चिकित्सा सेवा तथा कुपोषण से पैदा हालात के कारण बीते साल दुनिया में 60 लाख 40 हजार बच्चों की मौत हुई. यानी 2017 में हर पांचवें सेकेंड में दुनिया में कहीं-न-कहीं किसी बच्चे ने दम तोड़ा. भारत जैसे विकासशील देश में बड़ी तादाद में लोग अब भी गरिमापूर्वक जीवन जीने की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. इसका दुष्प्रभाव नवजात शिशुओं, पांच साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती स्त्री तथा प्रसूता माताओं की सेहत और जीवन-दशा पर होता है.
विकसित देशों की तुलना में भारत में आयु-प्रत्याशा (जन्म के समय) बहुत कम है, मातृ-मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर भी विकसित देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है. बहरहाल, एक आशा जगानेवाली खबर आयी है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य कुछ संस्थाओं के साझे अध्ययन का आकलन है कि पांच साल तक की उम्र के बच्चों की मृत्यु दर घटाने में भारत को बड़ी कामयाबी मिली है. फिलहाल वैश्विक स्तर पर बाल-मृत्यु दर (पांच साल और इससे कम उम्र के बच्चे) का औसत (प्रति हजार जीवित शिशुओं के जन्म पर) 39 है और अब भारत का आंकड़ा घटकर इस वैश्विक औसत के बराबर हो चला है.
मगर, चिंता की एक बात है कि लड़कियों (पांच साल तक की उम्र) की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में ज्यादा (लगभग ढाई फीसद) है. लड़कियों की मृत्यु दर का ज्यादा होना सामाजिक स्तर पर सेवाओं-सुविधाओं के बंटवारे के मामले में लैंगिक भेदभाव की सूचना देता है. सो, सेहत और पोषण के मोर्चे पर बड़ी जरूरत सेवा और सामानों की सुपुर्दगी को लैंगिक स्तर पर संवेदनशील बनाने की है.
बाल-स्वास्थ्य तथा जननी-स्वास्थ्य के मोर्चे पर प्रयासों को भी ज्यादा तेज किया जाना चाहिए. बेशक बाल-मृत्यु दर के मामले में 1990 तथा 2010 की तुलना में भारत की स्थिति अब सुधार पर है, लेकिन इतना काफी नहीं है. अच्छा होगा कि हम अपनी तुलना श्रीलंका और बांग्लादेश सरीखे पड़ोसी देशों से भी करें.
इस माह आयी संयुक्त राष्ट्र की सालाना मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रिपोर्ट संकेत करती है कि बांग्लादेश की स्थिति बाल-स्वास्थ्य के मामले में भारत से बेहतर है. साल 2016 में भारत में पांच साल तक के आयु-वर्ग में बाल-मृत्यु दर 43.0 और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर 34.6 थी, लेकिन बांग्लादेश में यह आंकड़ा क्रमशः 34.2 और 28.2 था. बांग्लादेश में पोषण और सेहत की सुविधाओं से वंचित बच्चों की संख्या (प्रतिशत में) भारत की तुलना में कम है.
साल 2017 में भारत में एक साल तक की उम्र के 9 फीसद बच्चों को डीपीटी तथा 12 फीसद बच्चों को खसरा का टीका नहीं लग सका था. लेकिन बांग्लादेश में ऐसे बच्चों की तादाद क्रमशः एक प्रतिशत और 9 प्रतिशत ही है. सो, नये आंकड़ों की रोशनी में भारत को टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को समय रहते हासिल करने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे. इस लिहाज से आंगनबाड़ी तथा आशाकर्मियों के मानदेय में वृद्धि एक उत्साहवर्धक कदम है.