आत्मसम्मान का मजहब नहीं होता

तीन तलाक का मामला केवल राज्यसभा में पारित न होने की वजह से अटका हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को अवैध करार देने के बावजूद ऐसे मामले सामने आ रहे थे. यह ऐसा मामला है, जो मुस्लिम महिलाओं के आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ है और आत्मसम्मान का कोई मजहब नहीं होता. तीन तलाक के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2018 1:11 AM
तीन तलाक का मामला केवल राज्यसभा में पारित न होने की वजह से अटका हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को अवैध करार देने के बावजूद ऐसे मामले सामने आ रहे थे. यह ऐसा मामला है, जो मुस्लिम महिलाओं के आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ है और आत्मसम्मान का कोई मजहब नहीं होता.
तीन तलाक के अधिकतर मामलों में महिला की इच्छा-अनिच्छा का कोई मतलब नहीं होता. उसे एक निर्जीव वस्तु की तरह रखा जाता है. तभी तो कभी नौकर के द्वारा, तो कभी फोन पर, तो कभी मैसेज के द्वारा भी तीन तलाक बड़ी ही आसानी से कह दिया जाता हैं. यह सोचना तलाक देने वाले की फितरत में ही नहीं होता कि उसके इस कदम से उस महिला के आत्मसम्मान को कितना गहरा धक्का पहुंचेगा.
इसकी पैरवी करने वालों को यह समझना चाहिए कि कई मुस्लिम देशों ने भी इसे अवैध करार दिया है. सभी राजनैतिक दलों के नेताओं से भी गुजारिश है कि वे जनता की आवाज सुनें और इस मामले को वोट बैंक की राजनीति से न जोड़ें.
सीमा साही, बोकारो

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