भारत बंद समाधान नहीं
पिछले कई महीनों से भारत बंदी में बढ़ोतरी हुई है. नेताओं और जनता पर एक अलग ही क्रेज चढ़ा है. ऐसी बात नहीं है कि पहले भारत बंद नहीं होता था, लेकिन अब जिस तरह से हो रहा है, महीने में दो-तीन बार, ऐसा पहले नहीं होता था. लोकतांत्रिक देश में सरकार का विरोध शांति […]
पिछले कई महीनों से भारत बंदी में बढ़ोतरी हुई है. नेताओं और जनता पर एक अलग ही क्रेज चढ़ा है. ऐसी बात नहीं है कि पहले भारत बंद नहीं होता था, लेकिन अब जिस तरह से हो रहा है, महीने में दो-तीन बार, ऐसा पहले नहीं होता था.
लोकतांत्रिक देश में सरकार का विरोध शांति व अहिंसक रूप से कर सकते हैं, लेकिन पिछले भारत बंदी में जो नजारा देखने को मिला है, वह चिंता करने योग्य है, क्योंकि हर बार बंद ने हिंसक रूप ले लिया है.
हिंसा से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक नुकसान होता है. विकासशील देशों के लिए यह गंभीर समस्या है. लगातार हाे रहे भारत बंद से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत बंद एक राष्ट्रीय त्योहार बन गया है. भारत बंद से न केवल वयस्क नागरिकों, बल्कि स्कूल जाने वाले बच्चों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है. इससे किसी का भला नहीं होनेवाला.
दिवाकर दास, मधुपुर