आधार पर स्पष्टता
वर्ष 2016 के आधार अधिनियम को संवैधानिक करार देने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से आधार की अनिवार्यता और उपयोगिता को लेकर चली आ रहीं आशंकाओं का बहुत हद तक समाधान हो गया है. अब इस संबंध में कहीं अधिक स्पष्टता से नियम-निर्देश बनाना और लागू करना संभव हो सकेगा. न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे […]
वर्ष 2016 के आधार अधिनियम को संवैधानिक करार देने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से आधार की अनिवार्यता और उपयोगिता को लेकर चली आ रहीं आशंकाओं का बहुत हद तक समाधान हो गया है. अब इस संबंध में कहीं अधिक स्पष्टता से नियम-निर्देश बनाना और लागू करना संभव हो सकेगा.
न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे पर कई महत्वपूर्ण प्रश्न थे- आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में संसद में पारित करना, पहचान को सत्यापित करने के लिए मौजूद अन्य दस्तावेजों के बावजूद विशिष्ट पहचान संख्या की आवश्यकता, आधार की अनिवार्यता का व्यक्ति की निजता के मौलिक अधिकार पर असर, आधार के लोगों की व्यापक निगरानी और उनकी गतिविधियों की टोह लेने का एक औजार में बदलने की आशंका आदि.
निर्णय का मूल तर्क है कि आधार पंजीयन के लिए नागरिकों से न्यूनतम व्यक्तिगत जानकारी ली जाती है, जबकि विशिष्ट संख्या के माध्यम से व्यापक जनहित साधा जा सकता है. पहचान-संख्या के नकली होने की शंका भी मिट जाती है. कहा जा सकता है कि आधार की उपयोगिता से जुड़े सरकारी तर्कों को न्यायालय ने सही पाया है.
सरकार का कहना था कि आधार भ्रष्टाचार को कम करने में सहायक है और इससे नागरिकों को भोजन और जीविका के अधिकारों तथा पेंशन, छात्रवृत्ति और सामाजिक सहायता के अन्य कार्यक्रमों के लाभ हासिल करने में भी मदद मिलती है.
हालांकि, इस मसले पर सुनवाई लंबी चली, लेकिन आधार के पक्ष में निर्णय आने का एक संकेत निजता के अधिकार से जुड़े सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मिल गया था. अगस्त में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करते हुए यह भी कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के अतिरिक्त ऐसी कई जायज वजहें हैं, जिनके आधार पर राजसत्ता नागरिकों से जुड़े निजी तथ्यों का संग्रहण और भंडारण करे.
इस फैसले में कहा गया कि भारत सरीखे लोक-कल्याणकारी राजव्यवस्था में सरकार समाज के वंचित और हाशिये के लोगों की भलाई के लिए कार्यक्रम चलाती है और संसाधनों के सीमित होने के कारण यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है कि लाभ सही हकदार को ही मिले.
बेशक पांच सदस्यीय खंडपीठ में बहुमत का फैसला आधार अधिनियम के पक्ष में है, परंतु यह भी ध्यान रखना होगा कि न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अलग से सुनाये अपने फैसले में धन विधेयक के रूप में पारित आधार अधिनियम को असंवैधानिक मानते हुए कहा है कि निजी संस्थाओं को आधार-संख्या के उपयोग की अनुमति देने से इसका दुरुपयोग हो सकता है.
खंडपीठ के निर्णय का एक संकेत यह भी है कि सरकार और आधार प्राधिकरण को भविष्य में आधार से संबंधित नियम बनाने और निर्देश निर्गत करने में समुचित सावधानी बरतनी चाहिए. इस परियोजना के तहत जुटाये गये आंकड़ों और सूचनाओं की सुरक्षा के लिए ठोस उपाय भी जरूरी है.