चीन के विदेश मंत्री वांग यी दो दिन के भारत दौरे पर हैं. भारतीय विदेश मंत्रलय के मुताबिक भारत की नयी सरकार से संपर्क साधने के लिए वे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विशेष दूत के रूप में आये हैं. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत मौके का उपयोग विभिन्न द्विपक्षीय मसलों पर मजबूती के साथ अपना पक्ष रखने में करेगा.
चीन और भारत के बीच मजबूत व्यावसायिक संबंध के बावजूद सीमा से जुड़े अन्य मुद्दे गाहे-बगाहे विवाद का कारण बनते रहते हैं. चीन और भारत के विदेश मंत्रियों को इनके यथाशीघ्र निपटारे की पहल करनी चाहिए. चीन भारत का सबसे बड़ा कारोबारी सहभागी है. दोनों देशों के बीच करीब 70 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है, जिसके 2014 तक 100 बिलियन डॉलर हो जाने की संभावना है.
परंतु इसका वाणिज्यिक संतुलन चीन के पक्ष में है. इसलिए बढ़ते व्यापार घाटे के मद्देनजर भारत को चीनी बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. 2001-02 में द्विपक्षीय व्यापार में चीन का हिस्सा मात्र एक बिलियन डॉलर था, जो अब 40 बिलियन डॉलर से अधिक है. मोदी सरकार के एजेंडे में कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं हैं, जिनके लिए बड़ी मात्र में धन की जरूरत होगी. अभी चीन और जापान ही दो ऐसे देश हैं, जिनके पास पर्याप्त नकदी है. ऐसे में भारत आर्थिक मदद के लिए भी प्रयास कर सकता है.
दोनों देश आपसी सहयोग बढ़ा कर अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को रफ्तार देने के अलावा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. भारत में बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थी भी हैं, जिन्हें आशा है कि सरकार उनके मानवाधिकारों के मुद्दे को भी वांग यी के सामने रखेगी. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई नेताओं को आमंत्रित कर और प्रस्तावित विदेश यात्र के पहले पड़ाव के रूप में भूटान को चुन कर संकेत दिये हैं कि पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करना उनकी प्राथमिकता है. पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ बैठक से भारत-पाक संबंधों को नयी ऊर्जा मिलने की आस बंधी है. अब भारत को चीनी विदेश मंत्री की दो दिनी यात्र का भी सकारात्मक लाभ उठाने और दोनों देशों के संबंधों में परस्पर भरोसा बहाल करने के लिए भरपूर कोशिश करनी चाहिए.