दिवस तो आते हैं और चले जाते हैं
।। रूपम कुमारी।। (प्रभात खबर, रांची) पर्यावरण दिवस आया और चला भी गया. हर बार की तरह इस बार भी पौधे लगाये गये और उससे भी ज्यादा पौधे लगाने की तसवीरें खिंचवाई व अखबारों में छपवाई गयीं. लेकिन, जैसे यह कतई जरूरी नहीं कि प्यार सिर्फ वैलेंटाइन डे के दिन किया जाये वैसे ही यह […]
।। रूपम कुमारी।।
(प्रभात खबर, रांची)
पर्यावरण दिवस आया और चला भी गया. हर बार की तरह इस बार भी पौधे लगाये गये और उससे भी ज्यादा पौधे लगाने की तसवीरें खिंचवाई व अखबारों में छपवाई गयीं. लेकिन, जैसे यह कतई जरूरी नहीं कि प्यार सिर्फ वैलेंटाइन डे के दिन किया जाये वैसे ही यह कहां लिखा है कि पर्यावरण की फिक्र सिर्फ पर्यावरण दिवस के दिन की जाये! पेड़-पौधों को तब भी लगाना, सींचना, देखना-भालना पड़ता है, पर थोड़ा-सा शऊर सीख लेने में कौन-सी मेहनत लगती है.
जैसे हम भले लोगों के बीच उठने-बैठने का, खाने-पीने का शऊर सीखते हैं वैसे ही पर्यावरण को साफ रखने का शऊर क्यों नहीं सीखते? जहां-तहां गंदगी क्यों फैलाते हैं? हम अपना घर तो साफ रखने की भरसक कोशिश करते हैं, लेकिन घर के बाहर की हर जगह को कूड़ेदान समझते हैं. दफ्तरों की सीढ़ियों के कोने हों, सड़क हो या फिर बाग-बगीचे ही क्यों न हों, लोग अपनी जहालत की निशानी छोड़ने से बाज नहीं आते.
और किसी को टोक दो तो बुरा मान जाते हैं. पिछले दिनों प्रधानमंत्री की कुरसी संभालने से कुछ दिन पहले मोदी जी बनारस गये. उन्होंने लगे हाथ बनारसियों को यह सलाह दे डाली कि अगर शहर को साफ -सुथरा बनाना है, तो दिन भर पान खा कर सड़कों पर पीक से चित्रकारी करने की आदत बदलनी होगी. खबर है कि इस पर वहां के कुछ लोगों ने कहा कि अच्छा हुआ कि मोदी जी ने यह बयान चुनाव बाद दिया, वरना उनके वोट कुछ कम जरूर हो जाते.
जब ये बंदे देश के प्रधानमंत्री की सुनने को तैयार नहीं, तो मैं क्या चीज हूं! इसलिए, मेरा मानना है कि पान, गुटखा, खैनी जैसी चीजों पर लगाम जब लगेगी तब लगेगी, सबसे पहले इनका प्रयोग करनेवालों पर लगाम लगाने की जरूरत है. पिछले दिनों टीवी पर आये ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में कूड़े-कचरे के निबटारे के लिए देश-दुनिया में हो रहे प्रयोगों पर चर्चा की गयी, लेकिन सच तो यह है कि हम भारतीय अपने घर का कूड़ा-कचरा ठिकाना लगाने में पीएचडी किये बैठे हैं. रहते पहले तल्ले पर हों या दूसरे, अगर म्यूनिसिपैलिटी का कूड़ेदान पास में हो तो हम कचरे को प्लास्टिक की थैली में बांध कर ऊपर से ही ऐसा निशाना लगायेंगे कि वह सीधा कूड़ेदान में ही गिरे.
अगर निशाना चूका तो क्या हुआ, सड़क तो सबकी है न! काले रंग की पॉलीथीन में आपका वह कचरा तब तक सड़क पर पड़ा रहता है, जब तक कोई कुत्ता उसमें से अपने काम की कोई चीज पाने के लिए उसे फाड़ कर तितर-बितर न कर दे. पर्यावरण दिवस पर जिन पौधों की रोपाई की तसवीर छपी है, क्या कोई उन्हें दूसरे दिन जाकर देखता भी है? ऐसा तो नहीं कि उन्हें बकरियों का चारा बनने या फिर धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है? क्योंकि आजकल ऐसे संगठनों और लोगों की कमी नहीं है जिन्हें पर्यावरण से ज्यादा रुचि पर्यावरण दिवस पर अपनी तसवीर खिंचवाने में रहती है.