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आधार कार्ड पर एक कहानी

पिछले आठ माह से उसकी पेंशन रुकी हुई थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इसकी वजह क्या है. वैसे ग्रामसेवक बुद्धन यादव ने उसे कई बार समझाया था कि उसका नाम वृद्धावस्था पेंशन की पुनरीक्षण सूची में चढ़ा दिया गया है और अब उसकी पेंशन सीधे बैंक खाते में जमा हो जायेगी, […]

पिछले आठ माह से उसकी पेंशन रुकी हुई थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इसकी वजह क्या है. वैसे ग्रामसेवक बुद्धन यादव ने उसे कई बार समझाया था कि उसका नाम वृद्धावस्था पेंशन की पुनरीक्षण सूची में चढ़ा दिया गया है और अब उसकी पेंशन सीधे बैंक खाते में जमा हो जायेगी, इसलिए पहले वहां खाता खुलवा ले. खाता खुलवाने के लिए आधार कार्ड जरूरी है, इसलिए पहले उसे बनवा ले. गांव में जो भी व्यक्ति, जिसे वह बराबर शहर आते-जाते देखती, वह उसकी नजर में थोड़ा शिक्षित था और उससे बड़े आदर-सम्मान के साथ इस संबंध में बातचीत करती.

उम्र के 72वें वर्ष में भी, बेटे-बहू का साथ छूटने के बाद भी उसमें इतना सामथ्र्य था कि वह पैदल शहर जा सकती थी, लेकिन गरीबी की मार उसे हर क्षण कमजोर किये जा रही थी. आधार कार्ड शहर और गांवों में अलग-अलग जगह पर कैंप लगा कर बनाया जा रहा था. एक दिन उसे पता चला कि पासवाले गांव में आधार कार्ड बन रहा है. वह अलस्सुबह भूखे पेट ही चल पड़ी, लेकिन वहां पहले से ही लोगों का हुजूम उमड़ा पड़ा था. उसकी आवाज उस भीड़ में दब गयी. निराश होकर वह कमजोर काया किसी तरह अपने घर पहुंची. कुछ दिन बाद उसने पता लगाया कि प्रखंड कार्यालय में आधार कार्ड बन रहा है. सुबह से ही बुखार से उसका शरीर तप रहा था. लेकिन आधार कार्ड बनवा कर बैंक से पैसे पाने की उम्मीद ने उसे आराम करने नहीं दिया. लाठी टेकते हुए शहर के रास्ते पर निकल गयी. चिलचिलाती धूप में भी उसके कदम धीरे-धीरे कार्यालय की ओर बढ़ रहे थे. अचानक गर्म हवा का एक झोंका अपने साथ धूल का गुबार लिये आया. वह वहीं चक्कर खाकर गिर पड़ी. धीरे-धीरे धुंधलाती नजरों से वह अब भी प्रखंड कार्यालय की ओर देख रही थी.

गंगेश गुंजन, ई-मेल से

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