संकट में कृषि क्षेत्र
नव-पाषाण काल से आधुनिक काल तक कृषि भारतीयों की आजीविका की प्रमुख साधन रही है. मगर आज इसकी स्थिति आज बड़ी दयनीय हो गयी है. आज कृषि शब्द सुनते ही हमारे मस्तिष्क में लहलहाते खेत, खलिहानों के इतर किसानों के मायूस चहरे, चहरे पर चिंता की लकीरें नजर आने लगती है. आखिर इस स्वर्णिम क्षेत्र […]
नव-पाषाण काल से आधुनिक काल तक कृषि भारतीयों की आजीविका की प्रमुख साधन रही है. मगर आज इसकी स्थिति आज बड़ी दयनीय हो गयी है. आज कृषि शब्द सुनते ही हमारे मस्तिष्क में लहलहाते खेत, खलिहानों के इतर किसानों के मायूस चहरे, चहरे पर चिंता की लकीरें नजर आने लगती है. आखिर इस स्वर्णिम क्षेत्र की इतनी दयनीय स्थिति क्यों?
1991 के आर्थिक सुधारों के बाद उद्योग एवं सेवा क्षेत्र का तो परस्पर विकास हुआ, लेकिन कृषि क्षेत्र की हालत बद से बदतर होती चली गयी. आज हम बड़े-बड़े उद्योगों की बात तो करते हैं, लेकिन इन अन्नदाताओं की बात नहीं करते. सच तो यह है कि बिना कृषि क्षेत्र की स्थिति सुधारे हम विनिर्माण क्षेत्र को नयी ऊंचाइयों तक नहीं ले जा सकते. विकसित भारत के निर्माण के लिए कृषि क्षेत्र में विकास करना ही होगा.
मोहम्मद इरफान, वासेपूर