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नयी पहलों की जरूरत

देशों की परस्पर आर्थिक निर्भरता के लाभों को व्यापकता देने के लिए सेवाओं और वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग की नयी आर्थिक विश्व-व्यवस्था विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से स्थापित की गयी थी. लगभग तीन दशक के सफर में वैश्वीकरण को कई बार चुनौती मिली तथा विभिन्न क्षेत्रों को वित्तीय संकटों का सामना करना पड़ा. […]

देशों की परस्पर आर्थिक निर्भरता के लाभों को व्यापकता देने के लिए सेवाओं और वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग की नयी आर्थिक विश्व-व्यवस्था विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से स्थापित की गयी थी.
लगभग तीन दशक के सफर में वैश्वीकरण को कई बार चुनौती मिली तथा विभिन्न क्षेत्रों को वित्तीय संकटों का सामना करना पड़ा. साल 2008-09 की हालिया मंदी के असर से दुनिया पूरी तरह से अभी उबर नहीं सकी है. इसी कारण विश्व व्यापार संगठन, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने नये सिरे से पहलकदमी शुरू की है. इन संस्थाओं को लगने लगा है कि वैश्वीकरण के नियमों को नये सिरे से लिखना जरूरी है. इन्होंने संयुक्त रूप से आह्वान किया है कि वैश्विक व्यापार के नियमों में त्वरित सुधार किये जाने चाहिए, क्योंकि दुनिया के कुछ ताकतवर देश अपने पुराने वादों से मुकर रहे हैं.
बीते दिनों संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भूमंडलीकरण की तीखी आलोचना की और विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाओं पर सवाल उठाया. उन्होंने अपनी संरक्षणवादी नीतियों को भी सही ठहराया. इसी का एक नतीजा अमेरिका और चीन का व्यापार युद्ध है. विश्व व्यापार संगठन का आकलन है कि यदि यह व्यापारिक तनाव तेज होता है, तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार की वृद्धि में 17 फीसदी की कमी आयेगी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पादन दो फीसदी तक गिर सकता है. अब सवाल है कि घरेलू मोर्चे पर रोजगार बढ़ाने और पूंजी के पलायन को रोकने की जरूरत से जूझ रही बड़ी आर्थिक ताकतों को संरक्षणवादी नीतियां अपनाने से कैसे रोका जाये?
विश्व व्यापार संगठन की सलाह है कि इसके लिए ई-कॉमर्स की पहुंच बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए, व्यापारिक समझौते के लिए नियमों को ज्यादा लचीला बनाया जाना चाहिए और सरकारों को अपनी व्यापारिक नीतियों में अधिक पारदर्शिता लाना चाहिए. ऐसे प्रस्ताव यूरोपीय संघ और कनाडा की तरफ से पहले भी आये हैं. चीन और अमेरिका भी सुधारों के आग्रही हैं, पर इनके स्वरूप पर दोनों देशों की राय अलग-अलग है.
लेकिन मसला सिर्फ कुछ देशों के रवैये और सहमति तक सीमित नहीं रखा जा सकता है. वैश्विक स्तर पर अगर नये सिरे से नियम बनाये जाते हैं, तो उनमें भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को भी पर्याप्त महत्व मिलना चाहिए. वैश्वीकरण का भविष्य बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि चीन और भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देशों में घरेलू मांग में बढ़ोतरी किस तेजी से हो रही है.
वैश्वीकरण का तीन दशक पुराना इतिहास बताता है कि भारत ने घरेलू मांग बढ़ने के कारण वैश्विक आय और रोजगार की वृद्धि में चीन की ही तरह महत्वपूर्ण योगदान किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार के अन्य प्रतिनिधि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बहुध्रुवीय विश्व और वैश्वीकरण के पक्ष में अपनी बात रखते रहे हैं. ऐसे में भारत की राय और आवश्यकता को वांछित महत्व दिया जाना चाहिए.

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