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सफाई का सच

देश ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन मनाया. इस अवसर को स्वच्छता सेवा में तब्दील करना वाकई उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है. अगर-मगर तो होंगे, फिर भी सवालों को बगैर जवाब के छोड़ना भी ठीक नहीं. बड़े-बड़े होर्डिंग्स, एलइडी स्क्रीन्स और अखबारों के पन्नों पर बड़े-बड़े चेहरे झाड़ू लगाते […]

देश ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन मनाया. इस अवसर को स्वच्छता सेवा में तब्दील करना वाकई उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है.
अगर-मगर तो होंगे, फिर भी सवालों को बगैर जवाब के छोड़ना भी ठीक नहीं. बड़े-बड़े होर्डिंग्स, एलइडी स्क्रीन्स और अखबारों के पन्नों पर बड़े-बड़े चेहरे झाड़ू लगाते देखे गये, मगर गटर में मरने वाला हर बार मलिन बस्ती का कोई टिमटिमाता चिराग ही होता है. सफाई के इस सियासी मिजाज से सब वाकिफ हैं.
सफाई तो हुई, मगर उनके कचरे कहां गये, किसी ने नहीं देखा. गावों में फेंके गये या किसी गटर या नदी के हवाले कर दिये गये? मुद्दा तो कचरों के सुरक्षित निस्तारण का है, जहां सब खामोश हो जाते हैं. सफाई के उस गंदे सच को बार-बार नजरअंदाज करना बेहद खतरनाक है. शहर साफ और बस्तियां गंदी! कब तक हमारे शहर शंघाई और नदियां नर्क बनती रहेंगी ?
एमके मिश्रा, रातू, रांची

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