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किसानों को राहत
केंद्र सरकार ने रबी की छह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 21 फीसदी तक की बढ़ोतरी करने की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा लिये गये इस फैसले से किसानों को 62,635 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय का अनुमान है. न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि […]
केंद्र सरकार ने रबी की छह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 21 फीसदी तक की बढ़ोतरी करने की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा लिये गये इस फैसले से किसानों को 62,635 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय का अनुमान है. न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि किसान आंदोलनों की एक प्रमुख मांग रही है.
जुलाई में खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी हुई थी, जो लागत से पचास फीसदी अधिक थी. ताजा फैसले में रबी फसलों के जो समर्थन मूल्य तय किये गये हैं, वे लागत से 50 से 112 फीसदी तक ज्यादा हैं. हालांकि, यह पहल किसानों की मांग के अनुरूप है, लेकिन बड़ी चुनौती इसका फायदा उन तक पहुंचाने की है. फसल की खरीद के लिए सरकारी ढांचा लचर है और उसकी पहुंच सीमित है. मंडियों में अक्सर किसानों को बहुत इंतजार करना पड़ता है तथा भुगतान में भी देरी होती है. ऐसे में उन्हें खुले बाजार में अपने उत्पादों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
छोटे और सीमांत किसान को शायद ही समर्थन मूल्य का लाभ मिल पाता है, क्योंकि उसे अपनी जरूरत के लिए नकदी की तुरंत जरूरत होती है और उसके पास मंडी तक अपनी उपज ले जाने का समुचित साधन भी नहीं होता है. सरकार ने ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ के माध्यम से किसानों को समर्थन मूल्य का लाभ सुनिश्चित करने की पहलकदमी की है, लेकिन इसे व्यापक रूप से लागू होने में समय लगेगा. ऐसे में खरीद के तंत्र और वर्तमान प्रक्रिया को दुरुस्त करने की जरूरत है.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली हेतु अनाज जुटाने के लिए सर्वाधिक खरीद राज्य सरकारों द्वारा की जाती है. गेहूं और धान की कुल सरकारी खरीद में भारतीय खाद्य निगम की हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम है. नैफेड जैसी केंद्र सरकार की एजेंसियां भी खरीद करती हैं, जिनके घाटे की भरपाई कृषि मंत्रालय द्वारा होती है, लेकिन इसमें देरी के कारण एजेंसियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
कुछ अन्य योजनाएं भी हैं, जिनके तहत खरीद के लिए पूंजी दी जाती है और नुकसान होने पर उसका बोझ सरकार उठाती है. यह प्रणाली तभी कारगर हो सकती है, जब किसान की पहुंच इन एजेंसियों तक आसानी से हो सके. ईंधन, खाद, दवाई और साजो-सामान के दाम बढ़ने के कारण खेती की लागत बढ़ती जा रही है. इस कारण बढ़ी हुई कीमत भी कम पड़ जाती है. जनवरी, 2015 में शांता कुमार कमेटी ने अपने अध्ययन में पाया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत कुल उत्पादन का मात्र 28 फीसदी हिस्सा ही खरीदा-बेचा जाता है.
देश के 5.8 फीसदी से भी कम ऐसे खेतिहर परिवार हैं, जो सरकार को अपनी उपज बेच पाने की क्षमता रखते हैं. बहरहाल, फसलों के दाम बढ़ाने से किसानों को कुछ राहत तो जरूर मिलेगी, लेकिन उनकी मुश्किलों के हल तथा आमदनी बढ़ाने के लिए अन्य उपायों पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
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