शहीदों को बड़े सम्मान नहीं

कानून और भूगोल जैसे विषयों में परिवर्तन संभव है, मगर क्या इतिहास बदलना भी मुमकिन है? असंभव कुछ नहीं मानने वाली आज की पीढ़ी ‘चलो इतिहास बदल दें’ का पैगाम लिये सड़कों पर उतर चुकी है. पुरानी हकीकतों से नयी इबारत लिखने का जुनून ही तो मुल्क को नया हिंदुस्तान बना रहा है. आजादी की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2018 6:10 AM
कानून और भूगोल जैसे विषयों में परिवर्तन संभव है, मगर क्या इतिहास बदलना भी मुमकिन है? असंभव कुछ नहीं मानने वाली आज की पीढ़ी ‘चलो इतिहास बदल दें’ का पैगाम लिये सड़कों पर उतर चुकी है.
पुरानी हकीकतों से नयी इबारत लिखने का जुनून ही तो मुल्क को नया हिंदुस्तान बना रहा है. आजादी की लड़ाई में गांधी की भूमिका पर उठते सवालों से जाहिर है कि इतिहास बदलाव की डगर पर चल पड़ा है.
वीर सपूतों की कुर्बानियां किताबों में दब कर रह गयीं, जबकि गांधी पूरी दुनिया में मशहूर हो गये. संभव है, इन सवालों के जवाब मिल जाएं, मगर देश तो पूछेगा कि सबसे बड़े सम्मान की सूची में शहीदों की जगह खाली क्यों है? इतिहास की सुनहरी किताब में राजनीति का काला पन्ना न घुसा होता, तो शायद कई अनमोल नगीने ‘भारत रत्न’ होते.
एमके मिश्रा, रातू, रांची

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