कराची से क्वेटा की दूरी करीब 600 किमी है. कराची पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है, तो क्वेटा बलूचिस्तान में. कराची पाक की आर्थिक राजधानी कहलाता है, तो क्वेटा ईरान होते हुए पूरे मध्यपूर्व की तरफ खुलनेवाला द्वार. भाषा, भूगोल, आर्थिकी और संस्कृति के धरातल पर पाकिस्तान के ये दो शहर आपस में भले दूर हैं, लेकिन पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी समूह तालिबान के लिए यह दूरी मायने नहीं रखती.
तालिबान कराची और क्वेटा के प्रशासन को अपने हमले की भयावहता और आकस्मिकता से समान रूप से दहला सकता है. इसी की नजीर है कि जिस दिन पाक सेना कराची एयरपोर्ट को तालिबान के कब्जे से छुड़ाने के लिए जूझ रही थी, उसी दिन क्वेटा में प्रशासन ईरान से लगती सीमा पर शिया जायरीनों की बस पर हुए आतंकी हमले के आगे बेबस खड़ा था.
इन हमलों के 36 घंटे के भीतर मंगलवार को कराची एयरपोर्ट के बाहर एयरपोर्ट सिक्योरिटी फोर्स के कैंप पर हमला कर तहरीक-ए-तालिबान ने फिर अपनी ताकत दिखा दी. इन हमलों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में संदेश गया है कि पाक में आतंकी बंदूकों और रॉकेट लांचरों के आगे न तो धार्मिक अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं, न ही कराची एयरपोर्ट के वीआइपी लाऊंज में बैठनेवाले नव-धनाढ्य. वहां आतंकवाद तकरीबन सर्वव्यापी और सर्वग्रासी रूप ले चुका है. न तो कराची पहली बार आतंकी हमले की चपेट में आया है, न ही बलूचिस्तान में आतंकी कार्रवाइयां नयी बात हैं.
अगर कुछ नया है, तो आतंकी समूहों के आगे नवाज सरकार की पस्तहिम्मती. नवाज सरकार आतंकवाद से निपटने में नीतिगत स्तर पर कुछ खास नहीं कर पा रही है. सरकार ने जनजातीय बहुल खैबर इलाके की तिराह घाटी में कुछ आतंकी ठिकानों पर औचक कार्रवाई की है, पर यह तो नवाज शरीफ से पहले की हुकूमतें भी करती आयी हैं, खासकर उत्तरी वजीरिस्तान में. ऐसी कार्रवाइयों से पाक के जनजातीय इलाके में असंतोष और भड़का है तथा इस असंतोष को भुनाते हुए तालिबान और ज्यादा मजबूत हुआ है. एक ऐसे वक्त में जब तहरीक-ए-तालिबान से नवाज शरीफ सरकार की शांतिवार्ता की कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं, सरकार को नये सिरे से यह तय करना होगा कि पाकिस्तान को ‘फेल्ड स्टेट’ की छवि से कैसे उबारा जाये.