।। शैलेश कुमार।।
(प्रभात खबर, पटना)
इनसानी व्यवहार को समझने और उसका आकलन करने का मुङो बड़ा शौक है. अब इसके लिए मेरे दिमाग का कीड़ा जिम्मेवार है या फिर ग्रेजुएशन में की गयी मनोविज्ञान की पढ़ाई, यह मैं नहीं जानता. लेकिन, अगर मैं लोगों के व्यवहार के बारे में लिखने बैठ जाऊं, तो कई किताबें बन जायेंगी. जिन लोगों के व्यवहार की मैंने चीर-फाड़ की है, उनमें से कुछ के बारे में आज आपको बताता हूं.
बेंगलुरु में मेरा एक दोस्त है, जिसे उसके दफ्तर की ही एक सहयोगी ने अपना लंच खाने से मना कर दिया. इस पर वह बोला, अपने बगलवाले को तो तू रोज अपना टिफिन खिलाती है. इस पर उसकी दोस्त भड़क गयी और उसे खूब सुनाया. फिर शुरू हुआ इमोशनल ड्रामा. मेरे दोस्त ने उस लड़की को मैसेज करना शुरू किया, ‘देखो मैं इन दिनों थोड़ा परेशान हूं. ऐसी हरकतें हो जा रही हैं मुझसे. तुम चाहो तो मुझसे बात करना बंद कर सकती हो, लेकिन मुङो गलत नहीं समझना.’ अब मुङो यह नहीं समझ आता कि यदि कोई परेशान है, तो क्या वह किसी से ऐसी बातें करेगा क्या? असल में मनोविज्ञान में इस प्रकार की हरकतों को किसी का ध्यान अपनी ओर खींचने का जरिया मानते हैं. मेरा एक और दोस्त है. वह जब भी ऑटो में चलेगा या फिर दफ्तर में रहेगा, अपने फोन को साइलेंट मोड में डाल
कर किसी को झूठ-मूठ फोन लगायेगा. फिर आसपास वालों को कुछ ऐसी बातें सुनायेगा, ‘यू नो यार, हाउ मच बिजी आइ एम.. उसे बोल दिया है, तेरा काम हो जायेगा.. उस मिनिस्टर के साथ तो मेरा सुबह-शाम का उठना-बैठना है.. पेपर बहुत आसान था, पर ज्यादा लिखा नहीं, सोचा कि ज्यादा नंबर ला कर क्या मिलेगा..’ वगैरह वगैरह. कुछ ऐसा ही नाटक करते समय एक दिन वह फोन को साइलेंट करना भूल गया और ऑटो में जिन लड़कियों के बगल में बैठ कर वह शेखी बघार रहा था, अचानक फोन की घंटी बजने पर उनके सामने उसकी पोल खुल गयी. एक और उदाहरण देखिए. मेरे एक रूम मेट की किसी लड़की से दोस्ती हुई. उसे पटाने के लिए उसने इमोशनल मैसेज का सहारा लिया. मसलन, ‘मन बहुत उदास लग रहा है.
अकेला पड़ गया हूं बिल्कुल. आज तो डिनर करने का भी मन नहीं हुआ. सोचा अकेले क्या बनाऊं.. तुमसे बात करने का बड़ा मन हो रहा है, बिजी हो तो कोई बात नहीं.’ ये सभी मैसेज वह मेरे और बाकी दोस्तों के सामने उस लड़की को भेज रहा था. मजे से खा-पी रहा था और हमारे संग मस्ती भी कर रहा था. और दूसरी ओर वह बेचारी लड़की मैसेज में जवाब दे रही है, ‘प्लीज कुछ खा लो. क्यों कहा कि तुम अकेले हो, मैं हूं न तुम्हारे साथ. कल बात करते हैं न मिल कर.’ मुङो नहीं मालूम मैं क्यों ये बातें आपसे साझा कर रहा हूं, लेकिन मैं बस इतना बताना चाहता हूं कि हमारे आसपास लोग दिखावा कितना करते हैं और उनकी भीड़ में एक सच्चे इनसान की तलाश करना अब कितना कठिन हो गया है.