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सुबह उठो, तो एक हिसाब लगाओ

।। चंचल।। (सामाजिक कार्यकर्ता) बरगद की छांह, कूएं का जल, पुरवइया बयार, दुपहरिया कट रही है. बंसखटी पर बायें करवट लेटे नवल उपाधिया रानी सारंगा गा रहे हैं. लोग सुन रहे हैं, सो रहे हैं, जम्हाई ले रहे हैं. लखन कहार खलल डाल रहे हैं- खर्राटे ले रहे हैं. लाल्साहेब ने अपनी खटिया उठा ली […]

।। चंचल।।

(सामाजिक कार्यकर्ता)

बरगद की छांह, कूएं का जल, पुरवइया बयार, दुपहरिया कट रही है. बंसखटी पर बायें करवट लेटे नवल उपाधिया रानी सारंगा गा रहे हैं. लोग सुन रहे हैं, सो रहे हैं, जम्हाई ले रहे हैं. लखन कहार खलल डाल रहे हैं- खर्राटे ले रहे हैं. लाल्साहेब ने अपनी खटिया उठा ली और दूसरे किनारे जा लेट गये. उमर दरजी ने घास का एक तिनका लखन की नाक में डाला तो बवाल हो गया. बात आगे बढ़ती, उसके पहले ही कीन उपाधिया मजा लेने लगे- ये भाई! तू लोग त आप की तरह हो गये हो. उमर को समझ नहीं आया-आप की तरह? कयूम मुस्कुराये, आप.. आम आदमी पार्टी..झाड़ू..टोपी.. न खेलब न खेले देब..

चिखुरी भी उठ बैठे. गमछे से पीठ पोंछा, बुदबुदाए-ससुरी पुरवइया एकंगी चलती है. एक तरफ आराम देगी, दूसरी तरफ भिगा जायेगी. लखन, पानी लाव बेटा औ हमरे ओसारे में एक गगरा है, उसमें से चार-पांच भेली निकाल ला, पानी पीया जाये. जेठ की तपन, मनमनाती दुपहरिया. एक-एक कर सब चिखुरी की ओर खिसक आये. कयूम ने सूचना दी- सरकार ने चीनी का दाम बढ़ा दिया. कीन उपाधिया बोले- पिछले बीस साल में तुम लोगों ने सौगुनी महंगाई बढ़ायी, हमारी सरकार ने अठन्नी बढ़ा दी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? सवाल अठन्नी-चवन्नी का ना है, सवाल है कि वादा किये रहे कि महंगाई कम करेंगे, उसका क्या? लाल्साहेब ने कीन को ही सरकार मान लिया. उमर दरजी बोले- बात महंगाई की भयी रही, चीनी की नहीं. लाल्साहेब गुस्सा गये.

चिखुरी ने कहा- भाई लाल्साहेब! उमर सही कहि रहे हैं. यह सियासत की बारीकी है, इसको अगर हम समझ जाते, तो क्या बात थी? चीनी की कीमत बढ़ेगी, गुड़ की कीमत गिरेगी. क्योंकि चीनी कारखाने से निकलता है और गुड़ खलिहान से. आलू की कीमत गिरेगी, लेकिन चिप्स की कीमत बढ़ेगी. पिछली सरकार के समय महंगाई को लेकर जो आंदोलन हुए, उसमें क्या-क्या गिनाया था? आलू, बैगन, तेल. खाते-पीते घर की महिलाएं बैगन दिखा-दिखा कर तसवीर खिंचवा रही थीं. बिस्लेरी का पानी पी-पी कर गरिया रही थीं. कुरकुरे और चिप्स डकार रही थीं. कीन ने एक बात कही कि ‘अठन्नी’ ही तो बढ़ी है. सही है कि जो 40 रुपये दे रहा था, अठन्नी और दे देगा. पहले झटके में इसका असर नहीं दिखता, लेकिन अंदाजा लगाओ कि प्रतिदिन पूरे देश में कितनी चीनी की खपत है, प्रति किलो चीनी पर कितनी अठन्नी जुड़ रही है?

लाल्साहेब की आंख गोल हो गयी. चौंको मत, यह इस जमाने का नया निजाम है- झटका नहीं, हलाल करो. खेत का सामान जिसे उत्पाद कहते हैं, वह छटांक में, ग्राम में, किलो में नहीं बिकता, वह क्विंटल में बिकता है और जब एक क्विंटल पर पचास रुपये की भी बढ़ोत्तरी हुई, तो समझो सामान महंगा. लेकिन कारखाने का उत्पाद क्विंटल कौन कहे, किलो में भी नहीं बिकेगा. वह मिलीग्राम से शुरू होगा और ज्यादा से ज्यादा कुछ ग्राम तक जायेगा. इसे खरीदते समय खरीदार को कितना ठगा जा रहा है, उस पर बात ही नहीं होती. कभी तुमने सुना कि चिप्स किलो की पैकिंग में और शैम्पू लीटर के भाव बिकता है? क्रीम, साबुन कोई भी उत्पाद देख लो, इनकी पैकिंग बिकती है. इस पर बहस नहीं चलती.

लखन ने हामी भरी- बात तो वाजिब कही आपने, लेकिन इससे छुटकारा कैसे मिले? चिखुरी बोले- दो तरीका है-एक गांधी का, दूसरा लोहिया का. बापू कहते हैं जिस चीज का बहिष्कार करो, उसका विकल्प भी तैयार रखो. किसी सामान को घर से खारिज करने के पहले, मन से खारिज कर लो. तब आपके साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता कि चीनी ही खाओ. यह खुदमुख्तारी का रास्ता है. दूसरा तरीका डॉ लोहिया का है. वे कहते थे- एक ऐसी औद्योगिक नीति बनाओ जो खेत और खलिहान के बीच रिश्ता तय करे. जब तक दाम नहीं बांधोगे, लूट जारी रहेगी. बड़े घरानों की लूट से बचना है, तो बहस चालू करो. लोगों को जगाओ. एक हिसाब देखो- चिप्स खरीदो, उसका वजन देखो 55 ग्राम, कीमत है 20 रुपये. एक किलो चिप्स कितने का हुआ? उमर तैं बता तो.

उमर जोड़ने लगे.. 360 रुपये कीलो चिप्स! माथा घूम रहा है, कहते हुए नवल खिसकने को उठे. चिखुरी ने ललकारा- सरकार को, नेता को, भ्रम फैलानेवाले माध्यमों को गरियाना बंद करो. यह उनका काम है, चलता रहेगा. उसे रोक दो, बस. कल सुबह जब उठो, तो एक हिसाब लगाओ कि कारखाने के कितने उत्पाद प्रयोग करते हो. हर चीज का हिसाब लगा कर विकल्प तैयार करो. वह भी तैयार नहीं करना है, तो जो तुम्हारे पास प्रचुर मात्र में मौजूद है, उसकी तरफ ही बढ़ जाओ. यही तुम्हारी असली आजादी होगी.

नवल ने साइकिल उठा लिया- बहुत गंभीर मामला बा भाई. खपड़ी घूम गयी है इस नयी आजादी से..और सुर में आ गये- ई गरमी बेसरमी ना.. नवल चले जा रहे हैं. सूरज बस्वारी के पीछे से झांक रहा है.

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