कथनी और करनी का फर्क

सुपौल के कस्तूरबा आवासीय स्कूल से आयी खबर ने एक बार फिर महिला हिंसा के बारे सामाजिक अवधारणा की कलई खोल दी हैं. भले ही हम लाख स्त्री को देवी मानें और पूजा करें, पर लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं. जिन स्थानीय लोगों ने लड़कियों के साथ अभद्रता की, वही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 11, 2018 6:10 AM
सुपौल के कस्तूरबा आवासीय स्कूल से आयी खबर ने एक बार फिर महिला हिंसा के बारे सामाजिक अवधारणा की कलई खोल दी हैं. भले ही हम लाख स्त्री को देवी मानें और पूजा करें, पर लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं.
जिन स्थानीय लोगों ने लड़कियों के साथ अभद्रता की, वही लोग नवरात्रि में मां की पूजा करेंगे, जो एक स्त्री हैं. इस समस्या का सही निदान नहीं हो रहा है, तभी तो कड़े कानून के बावजूद इस तरह की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं. जरूरत हैं इसकी जड़े परिवार में ही तलाशने की. अभद्रता और मारपीट करने वाले भी परिवार से आते हैं तथा किसी के बेटे और भाई हैं.
महिलाएं इसमें मुख्य भूमिका अदा कर सकती हैं क्योंकि बच्चों का पालन -पोषण उन्हीं के द्वारा होता है. वे अपने बेटों को लड़कियों की इज्जत करना बचपन से सिखाएं. अगर मां -बाप अपनी बेटियों को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो शुरुआत घर से ही करनी होगी .
सीमा साही, बोकारो

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