पुलिस मुस्तैदी का पैमाना!

बढ़ते अपराधों पर काबू पाने में जिम्मेवार विभाग की नाकामी से झारखंड सरकार की किरकिरी लाजिमी है. जान-माल की हिफाजत का वादा करने वाला महकमा रपट लिखने तक ही अपने फर्ज का दायरा समझ बैठा है. सुरक्षा की बात कौन करे, ज्यादातर वारदातों में अपराधियों का सुराग पाना भी एक चुनौती है. कुछ सामान्य व […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 15, 2018 7:14 AM
बढ़ते अपराधों पर काबू पाने में जिम्मेवार विभाग की नाकामी से झारखंड सरकार की किरकिरी लाजिमी है. जान-माल की हिफाजत का वादा करने वाला महकमा रपट लिखने तक ही अपने फर्ज का दायरा समझ बैठा है. सुरक्षा की बात कौन करे, ज्यादातर वारदातों में अपराधियों का सुराग पाना भी एक चुनौती है. कुछ सामान्य व बेकसूर लोगों को डरा कर यह कड़क विभाग अपने महान कर्तव्य का निर्वाह करता है.
अखबारी खबरों की मानें, तो संदिग्धों की खोज के बहाने देर रात हेलमेट चेकिंग और अवैध वसूली अभियान पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं. वरना बार-बार दोहरायी जाने वाली वारदातें लोगों को क्यों डराती हैं?
बात यहीं खत्म नहीं होती. शहर के चौक चौराहों पर रेंगती गाड़ियों को रोककर, सीट बेल्ट और पॉल्यूशन का भय दिखा कर संभ्रांत लोगों से अवैध वसूली ही पुलिस मुस्तैदी का पैमाना बन गया है. अगर सरकार इस पर नहीं सोचती है और अपने अधिकारियों को सही दिशा नहीं देती है, तो राज्य के लिए इससे ज्यादा बुरा कुछ और नहीं होगा.
एमके मिश्रा, रातू, रांची

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