पटेल ने देश में एकता का भूगोल रचा

-नरेंद्र मोदी- (प्रधानमंत्री) वर्ष 1947 के पहले छह महीने भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण थे. साम्राज्यवादी शासन के साथ-साथ भारत का विभाजन भी अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था. हालांकि, उस समय यह तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं थी कि क्या देश का एक से अधिक बार विभाजन होगा. कीमतें आसमान पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 31, 2018 6:48 AM
-नरेंद्र मोदी-
(प्रधानमंत्री)
वर्ष 1947 के पहले छह महीने भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण थे. साम्राज्यवादी शासन के साथ-साथ भारत का विभाजन भी अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था. हालांकि, उस समय यह तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं थी कि क्या देश का एक से अधिक बार विभाजन होगा. कीमतें आसमान पर पहुंच गयी थीं, खाद्य पदार्थों की कमी आम बात हो गयी थी, लेकिन इन बातों से परे सबसे बड़ी चिंता भारत की एकता को लेकर नजर आ रही थी, जो खतरे में थी.
इस पृष्ठभूमि में ‘गृह विभाग’ का गठन 1947 के जून में हुआ. इसका एक प्रमुख लक्ष्य उन 550 से भी अधिक रियासतों से भारत के साथ उनके रिश्तों के बारे में बात करना था, जिनके आकार, आबादी, भू-भाग या आर्थिक स्थितियों में भिन्नताएं थीं. तब महात्मा गांधी ने कहा था, ‘राज्यों की समस्या इतनी ज्यादा विकट है कि सिर्फ ‘आप’ ही सुलझा सकते हैं.’ यहां पर ‘आप’ से आशय सरदार वल्लभ भाई पटेल से है, जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं.
अपनी विशिष्ट शैली में सरदार पटेल ने सटीक तौर पर सुदृढ़ता और प्रशासनिक दक्षता के साथ इस चुनौती को पूरा किया. समय कम था और जवाबदेही बहुत बड़ी थी. लेकिन, इसे अंजाम देनेवाली शख्सियत कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि सरदार पटेल थे, जो इस बात के लिए दृढ़प्रति‍ज्ञ थे कि वह किसी भी सूरत में अपने राष्ट्र को झुकने नहीं देंगे. उन्होंने और उनकी टीम ने एक-एक करके सभी रियासतों से बात की और इन सभी रियासतों को ‘आजाद भारत’ का अभिन्न हिस्सा बनाना सुनिश्चित किया.
पटेल ने पूरी तन्मयता और लगन से दिन-रात एक कर इस कार्य को पूरा किया, जिसकी बदौलत आधुनिक भारत का वर्तमान एकीकृत मानचित्र हम देख रहे हैं.
कहा जाता है कि वीपी मेनन ने स्वतंत्रता मिलने पर सरकारी सेवा से अवकाश लेने की इच्छा व्यक्त की. इस पर सरदार पटेल ने उनसे कहा कि समय आराम करने या सेवा निवृत्त होने का नहीं है. पटेल का ऐसा दृढ़संकल्प था.
वीपी मेनन विदेश विभाग के सचिव बनाये गये. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में लिखा है कि किस तरह पटेल ने इस मुहिम में अग्रणी भूमिका निभायी और अपने नेतृत्व में पूरी टीम को परिश्रम से काम करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने लिखा है कि सरदार पटेल के लिए सबसे पहले भारत की जनता के हित थे, जिस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता.
हमने 15 अगस्त, 1947 को नये भारत के उदय का उत्सव मनाया. लेकिन राष्ट्र-निर्माण का कार्य अधूरा था. स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में पटेल ने प्रशासनिक ढांचा बनाने का काम प्रारंभ किया, जो आज भी जारी है- चाहे यह दैनिक शासन संचालन का मामला हो या लोगों विशेषकर, गरीब और वंचित लोगों के हितों की रक्षा का मामला हो.
सरदार पटेल अनुभवी प्रशासक थे. साल 1920 के दशक में अहमदाबाद नगरपालिका में उनकी सेवा का अनुभव स्वतंत्र भारत के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने में सहायक साबित हुआ. उन्होंने अहमदाबाद में स्वच्छता कार्य को आगे बढ़ाने में सराहनीय कार्य किये और पूरे शहर में स्वच्छता और जल-निकासी प्रणाली सुनिश्चित की. उन्होंने सड़क, बिजली तथा शिक्षा जैसी शहरी अवसंरचना के अन्य पहलुओं पर भी जोर दिया.
आज यदि भारत जीवंत सहकारिता क्षेत्र के लिए जाना जाता है, तो इसका श्रेय सरदार पटेल को जाता है. ग्रामीण समुदायों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने का उनका विजन अमूल परियोजना में दिखता है. सरदार पटेल ने ही सहकारी आवास सोसाइटी के विचार को लोकप्रिय बनाया और अनेक लोगों के लिए सम्मान और आश्रय सुनिश्चित किया.
सरदार पटेल निष्ठा और ईमानदारी के पर्याय रहे. किसानों की उनमें प्रगाढ़ आस्था थी. वह किसान पुत्र थे, जिन्होंने बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया था. श्रमिक वर्ग उनमें आशा की किरण देखता था, ऐसा नेता देखता था, जो उनके लिए बोलेगा. व्यापारी और उद्योगपतियों ने उनके साथ इसलिए काम करना पसंद किया, क्योंकि वे समझते थे कि पटेल भारत के आर्थिक और औद्योगिक विकास के विजन वाले दिग्गज नेता हैं.
उनके राजनीतिक मित्र भी उन पर भरोसा करते थे. आचार्य कृपलानी का कहना था कि जब कभी वह किसी दुविधा में होते थे और यदि बापू का मार्गदर्शन नहीं मिल पाता था, तो वह सरदार पटेल का रुख करते थे. वर्ष 1947 में जब राजनीतिक समझौते के बारे में विचार-विमर्श अपने चरम पर था, तब सरोजिनी नायडू ने उन्हें ‘संकल्प शक्ति वाले गतिशील व्यक्ति’ की संज्ञा दी. पटेल के शब्दों और उनकी कार्यप्रणाली पर सबको पूरा विश्वास था. जाति, धर्म, आयु से ऊपर उठकर सभी लोग पटेल का सम्मान करते थे.
इस वर्ष सरदार की जयंती और अधिक विशेष है. 130 करोड़ भारतीयों के आशीर्वाद से आज ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन किया जा रहा है. नर्मदा के तट पर स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमाओं में से एक है. धरतीपुत्र सरदार पटेल हमारा सिर गर्व से ऊंचा करने के साथ हमें दृढ़ता प्रदान करेंगे, हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें प्रेरणा देते रहेंगे.
मैं उन सभी को बधाई देना चाहता हूं, जिन्होंने सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा को हकीकत में बदलने के लिए दिन-रात काम किया. मैं 31 अक्तूबर, 2013 के उस दिन को याद करता हूं, जब हमने इस महत्वाकांक्षी परियोजना की आधारशिला रखी थी. रिकॉर्ड समय में इतनी बड़ी परियोजना तैयार हो गयी और प्रत्येक भारतीय को इससे गौरवान्वित होना चाहिए.
मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि आप ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को देखने जरूर आएं. ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दिलों की एकता और हमारी मातृभूमि की भौगोलिक एकजुटता का प्रतीक है. यह याद दिलाता है कि आपस में बंटकर शायद हम मुकाबला नहीं कर पाएं, पर एकजुट रहकर हम दुनिया का सामना कर सकते हैं और विकास तथा गौरव की नयी ऊंचाइयों को छू सकते हैं.
सरदार पटेल ने उपनिवेशवाद के इतिहास को ढहाने के लिए अभूतपूर्व काम किया और राष्ट्रवाद की भावना के साथ एकता के भूगोल की रचना की. उन्होंने भारत को छोटे क्षेत्रों या राज्यों में विभाजित होने से बचाया और राष्ट्रीय ढांचे में कमजोर हिस्सों को जोड़ा.
आज, 130 करोड़ भारतीय नये भारत का निर्माण करने के लिए कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं, जो मजबूत, समृद्ध और समग्र होगा. प्रत्येक फैसला यह सुनिश्चित करके किया जा रहा है कि विकास का लाभ भ्रष्टाचार या पक्षपात के बिना समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक पहुंचे, जैसा कि सरदार पटेल चाहते थे.

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