हम सबके बीच हजारों सरदार

तरुण विजय वरिष्ठ नेता, भाजपा tarunvijay55555@gmail.com प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा का अनावरण कर एक अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया है.राष्ट्र के लिए विभिन्न लोगों ने जो कार्य किये, अपना जीवन अर्पित किया, उसे चाहे किसी भी सत्ता द्वारा दबाने या ढकने का प्रयास किया जाये, लेकिन वक्त की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 1, 2018 6:40 AM

तरुण विजय

वरिष्ठ नेता, भाजपा

tarunvijay55555@gmail.com

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा का अनावरण कर एक अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया है.राष्ट्र के लिए विभिन्न लोगों ने जो कार्य किये, अपना जीवन अर्पित किया, उसे चाहे किसी भी सत्ता द्वारा दबाने या ढकने का प्रयास किया जाये, लेकिन वक्त की हवा सच्चाई के दर्पण पर पड़ी सत्ता की मिट्टी उड़ा ही देती है और तब सच्चाई सामने आती है. सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची यह मूर्ति वस्तुत: भारत के स्वाभिमान और गौरव की ऊंचाई का अमर अभिमान बनी है.

लेकिन, मैं समझता हूं कि ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जिसने अपने जीवन में लोभ और स्वार्थ से परे हटकर देश और समाज को बिखरने से बचाया, राष्ट्र की अस्मिता और विरासत को विदेशी आक्रमणों से बचाने के लिए जीवन अर्पित कर दिया, ऐसे हजारों लोग हुए जो राजनीति में तो नहीं रहे, फिर भी वे कहीं ज्यादा बड़े दीर्घकालिक महत्व के कार्य कर गये, वे किसी सरदार से कम नहीं हैं.

उदाहरण के लिए एकनाथ रानाडे का नाम सामने आता है, जिन्होंने विवेकानंद केंद्र स्थापित किया, कन्याकुमारी में श्रीपाद् शिला पर विवेकानंद का भव्य स्मारक स्थापित किया.

उनके जीवन की एकात्मता का यह असाधारण पहलू था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अत्यंत वरिष्ठ प्रचारक होते हुए भी उनके इस महान कार्य में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और द्रमुक नेता करुणानिधि ने भी पूरा सहयोग दिया. यही राष्ट्रीय एकात्मता का भाव सरदार पटेल के जीवन से भी प्रकट होता है.

हमारे मध्य ऐसे अनेक ‘सरदार’ मिलते हैं, जो हमारे जीवन को सुरक्षित और भविष्य को आनंदमय बनाने के लिए अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ अर्पित करते हैं, लेकिन हम शायद कभी उनके नाम भी नहीं जान पाते. मुझे ऐसे ही एक वायुयोद्धा एयर मार्शल हेमंत नारायण भागवत से मिलने का सौभाग्य मिला, जिन्होंने साठ साल की आयु पूरे होने पर बीते महीने की आखिर में अवकाश ग्रहण किया.

हेमंत नारायण भागवत ने 38 वर्ष वायुसेना के माध्यम से देश की सेवा की और जब साठ वर्ष के पूरे हो गये, उसके बाद भी बीते 24 अक्तूबर को उन्होंने अपने जीवन की दो हजारवीं ‘फ्री फाल’ (बीसियों किमी की ऊंचाई से पत्थर की तरह नीचे छलांग मारने और जमीन के निकट आने पर ही पैराशूट खोलना, ताकि दुश्मन को पैराशूट देखकर वायुवीरों के नीचे आने का आभास न हो) पूरी की.

दरअसल, ‘फ्री फाल’ बहुत खतरनाक और सामान्य व्यक्ति के लिए प्राण कंपा देनेवाला युद्ध कार्य होता है. इसके प्रशिक्षण के लिए ही एयर मार्शल हेमंत नारायण जाने जाते थे.

कारण यह है कि प्राय: बीस हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे विमान या हेलीकॉप्टर से वायुसैनिक पैराशूट बिना खोले पृथ्वी की ओर छलांग लगाते हैं, तो उस ऊंचाई से जमीन तक तापमान में -30 डिग्री (माइनस 30 डिग्री) से लेकर जमीन के वातावरण के निकट की गर्मी के तापमान तक के अंतर को वायुवीर को कुछ ही क्षणों में झेलना पड़ता है.

इतना ही नहीं, यदि विमान से पृथ्वी तक की सीधी दूरी बीस किमी है, तो छलांग मारने के बाद हवा के बहाव और दिशा के अनुसार छलांग मारनेवाले वायुवीर को अक्सर 40-50 किमी की दूरी हवा में तैरते हुए तय करनी पड़ती है, तब जमीन निकट दिखने पर ही वे पैराशूट खोलते हैं.

अवकाश ग्रहण करनेवाले दिन एयर मार्शल हेमंत प्रसन्न थे, क्योंकि उन्होंने वायुयोद्धा के नाते एक संतोषजनक और गौरवशाली जीवन जिया. वे महाराष्ट्र में रत्नागिरी के अत्यंत सुंदर पश्चिमी सागर तटीय क्षेत्र के निवासी हैं.

शायद अपने संपूर्ण परिवार में वे पहले वायुसैनिक कहे जायेंगे, लेकिन उनके जीवन में एक और अतिगौरवशाली कथा है- उनके पूर्वज 18वीं शताब्दी के अंत में उन महान बाजीराव पेशवा की फौज में पुजारी थे, जिस फौज ने 1758 में सिंधु के तट पर अटक के किले के पास दुर्रानी की फौजों को हराकर किले पर भगवा झंडा लहराया था और विजय प्राप्त की थी.

तभी से मुहावरा चल पड़ा कि अटक से कटक तक भगवा लहराता है. रोचक बात यह भी है कि सौ साल पहले जब देश में विमान सेवा प्रारंभ हुई, तो उनके पिता के दादा-दादी जुहू के पास बने छोटे विमान तल पर गये और उस समय विमान यात्रा की छोटी उड़ान के लिए लगनेवाले किराये यानी प्रति यात्री पांच रुपये देकर यात्रा की.

एयर मार्शल हेमंत नारायण का जीवन उन हजारों सैनिकों के जीवन को जानने की उत्कंठा और प्रेरणा देता है, जो देश सेवा का सपना लेकर फौज में आते हैं. इन सैनिकों का जीवन लगातार तबादलों और नये स्थानों पर नियुक्तियों के बीच गुजरता रहता है. ये हमारे महापुरुष हैं, जो चाहे वायुसेना में हों या नौसेना में अथवा थल सेना में, इनमें से हर सैनिक मुझे सरदार का ही दर्शन कराता है.

अगर हम अपनी जिंदगी के इर्द-गिर्द देखें तो सच्चाई, ईमानदारी तथा मेहनत से साधारण जीवन जीते हुए भी भारत-भारती के सांस्कृतिक एकता सूत्र को बचानेवाले ऐसे हजारों सरदार हैं, जिनकी वजह से देश जिंदा है, एकता जिंदा है और देश का भविष्य सुरक्षित है.

जिस दिन बड़े सरदार की मूर्ति का अनावरण हुआ, उस दिन इन सामान्य लेकिन चमकते हुए सितारों की तरह हमारी जिंदगी रोशन करनेवाले सरदारों को प्रणाम कर मुझे अत्यंत आनंद प्राप्त हुआ.

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